अन्दर की चिंगारी!!?!! मेरे अन्दर एक छोटी सी चिंगारी अति सुक्ष्म्य, भीषण अति कठोर सीने में जल उठने को बेचैन वारी-वारी कैसी उथल-पुथल मचे दिल में भारी जब मन का हर कोन था विभोर अब फ़रमानी है जग में वेवाफाई तुम्हारी | बिन बतायें फेंक दिया जैसे_छुत की बीमारी, कितने बार ख़ाक किया-जला कर …
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मैथिलीशरण गुप्त के अति कठोर दृष्टिकोण को भी भूल जाएँ, 'शिक्षे, तुम्हारा नाश हो, तुम नौकरी के हित बनीं।'...लेकिन यह तो देखना होगा कि 'काला अक्षर भैंस बराबर' के खिलापफ लगातार चल रही सक्रियताओं और अकूत धन से सुसज्जित हजारों हजार परियोजनाओं के बाद भी भारत में 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' की भयावह स्थितियाँ क्यों बनी हुई हैं!
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(एक बार संत श्री आसारामजी ने तपस्वी धर्म पालने की इच्छा से भिक्षावृत्ति करने का मन बनाया और गाँव में एक घर के आगे जाकर कहाः) “ नारायण हरि.... ” यह सुनकर अभाव से पीड़ित गृहस्वामिनी ने अति कठोर वाणी में कहाः ” तुम नौजवान और हट्टे-कट्टे होते हुए भी यह भीख माँगते तुम्हें लज्जा नहीं आती? तुम स्वयं कमाकर अपना उदरपालन करो।
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गुरु जी को अति कठोर होकर ऐसे लोगो को अपने से दूर हटाना परा है, जिससे वे सभी प्रकृति के नियमनुसार अपने-अपने प्रारब्ध का फल भोग सके............ गुरु जी के क्षमा करने पर भी महाकाल ऐसो को कभी क्षमा नही करते...... कुछ लोगो ने, यद्यपि शक्ति संपन्न पर स्वभाव से भोले गुरु जी को माध्यम बना कर धर्म के नाम पर ब्याव्साय करना चाहा, परन्तु जब देखा की भौतिक संपदा अर्जन करना संभव नही हो पाया तो उन लोगो ने गुरु जी के साथ दुर्ब्याव्हार किया.
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युवावस्था में काम आदि दोष बड़े प्रबल रहते हैं, इसलिए युवक को भले ही सुख न हो, किन्तु वृद्धावस्था में काम आदि दोषों के शान्त हो जाने पर एवं विनीत पुत्र, पौत्र आदि द्वारा घर में सेवा होने पर वृद्ध को अति आनन्द होता है, ऐसी शंका कर वृद्धावस्था में अनन्त दुःखों का विस्तार से वर्णन करने की इच्छा से पहले ' अपने बच्चों का नाश करने वाले साँपों को दूसरे के बच्चों पर दया कैसे हो सकती है ' इस न्याय से वृद्धावस्था अति कठोर है, यह कहते हैं।