आपकी लिस्ट में अपना नाम देखना अचंभित कर गया! इतना आत्मविश्वास है मुझे कि मेरे लेखन की गुणवत्ता बढ़ी है, लेकिन मैं मानती हूँ कि मुझसे पहले अत्यंत उत्कृष्ट लेखन करते अनगिनत ब्लॉगर्स हैं.
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कण्टेण्ट और प्रस्तुतिकरण के हिसाब से अत्यंत उत्कृष्ट पोस्ट ललित शर्मा जी! आपके विषय में पहले नहीं जानता था, अत: यह लगता है कि जितनी उत्कृष्टता की कल्पना मैं हिन्दी ब्लॉगजगत में करता था, उससे कहीं अधिक है।
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सन् 1843 में बुन्सन ने एक अत्यंत उत्कृष्ट उपकरण का आविष्कार किया जो रमफर्ड द्वारा अनुसरित सिद्धांत पर ही आधरित था, किंतु उसमें दृष्टिगत प्रदीप्ति की तीव्रता का अनुमान के द्वारा निर्णय कर सकने के बदले सटीक निर्णय कर सकने की सुविधा थी।
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सन् 1843 में बुन्सन ने एक अत्यंत उत्कृष्ट उपकरण का आविष्कार किया जो रमफर्ड द्वारा अनुसरित सिद्धांत पर ही आधरित था, किंतु उसमें दृष्टिगत प्रदीप्ति की तीव्रता का अनुमान के द्वारा निर्णय कर सकने के बदले सटीक निर्णय कर सकने की सुविधा थी।
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सन् 1843 में बुन्सन ने एक अत्यंत उत्कृष्ट उपकरण का आविष्कार किया जो रमफर्ड द्वारा अनुसरित सिद्धांत पर ही आधरित था, किंतु उसमें दृष्टिगत प्रदीप्ति की तीव्रता का अनुमान के द्वारा निर्णय कर सकने के बदले सटीक निर्णय कर सकने की सुविधा थी।
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जब आप कहतें हैं कि “ कई ऐसे भी आलेख मिले जिनके आलेख और विषयवस्तु अत्यंत उत्कृष्ट श्रेणी के थे ” लेकिन उनमे कुछ “ मात्रात्मक या शाब्दिक त्रुटियाँ ” थीं. उत्तर वही जो आपने दिया है-” …….. और ज़रा दूसरे ब्लॉग पढ़ कर देखिये ….
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कई ऐसे भी आलेख मिले जिनके आलेख और विषयवस्तु अत्यंत उत्कृष्ट श्रेणी में रखे जा सकते थे किंतु उनमें कुछ मात्रात्मक या शाब्दिक त्रुटियों (जैसे मातृभाषा को ‘ मात्रभाषा ', क्योंकि को ‘ क्योकि ' आदि) को देखते हुए मजबूरन हम उन्हें विजेता की श्रेणी में शामिल नहीं कर सकते थे।
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कर्ष, निष्क, पण, कार्षापण आदि शब्दों से सफर प्रारम्भ करते हुए अब हम अपभ्रंश का सुख भोग रहे हैं | यदि आदिशब्द इतने सार्थक और सटीक थे तो निस्संदेह उस काल की शिक्षा / सभ्यता अत्यंत उत्कृष्ट एवं अनुकरणीय रही होगी | इस देश की प्राचीन संस्कृति पर जो भारतीय गर्व न करे वह कृतध्न है |
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बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं | आपकी भाषा, शब्दों का चयन और उनका विन्यास अत्यंत उत्कृष्ट और हम जैसे आम ब्लागरों से तो बहुत श्रेष्ठ है | कभी कभी तो मन करता है, आपसे कहूँ कि तनिक सरल शब्दों का प्रयोग करें या अंत में शब्दार्थ भी उद्धृत कर दें | बहुत कुछ सीखने को मिलता है आपसे, हिंदी भाषा के सन्दर्भ में |
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ऋग्वेद १ ० / ७ २ / २-वह जगतकर्ता परमेश्वर विविध मनों का स्वामी, आकाश के तुल्य व्यापक, संसार का धारण करने वाला, विशेष रूप से सूर्य चन्द्र तथा लोक लोकान्तरों का धारण ओर पोषण करने वाला, अत्यंत उत्कृष्ट ओर सर्वज्ञ हैं, जिस परमेश्वर के विषय में विद्वान् कहते हैं की वह सात इन्द्रियों से परे एक ही हैं और जिस परमेश्वर के आश्रय में उन इन्द्रियादी के अभिलाषित सब भोग्य पदार्थ उस प्रभु की प्रेरक शक्ति से भली प्रकार हर्ष के कारण बनते हैं.