परिणाम यह होता है कि पूंजीपति-स्वामी को उतने ही संसाधनों से अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त हो जाता है, जो उसके अधिलाभ को बढ़ाने में सहायक होता है.
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परिणाम यह होता है कि पूंजीपति-स्वामी को उतने ही संसाधनों से अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त हो जाता है, जो उसके अधिलाभ को बढ़ाने में सहायक होता है.
43.
जैसे-जैसे पूंजीवाद अपनी जड़ें फैलाता है, पूंजीपति के लिए अधिलाभ की स्थितियां बढ़ती ही जाती हैं, जो प्रकारांतर में श्रमिक-शोषण को बढ़ावा देती हैं.
44.
लेकिन यह तभी संभव है कि जब कार्यदिवस दिवस के दौरान किए कार्य का कुल मूल्य श्रमिक की दैनिक मजदूरी से अधिक हो और मालिक के लिए अधिलाभ की सुनिश्चितता हो.
45.
वह बार-बार एक ही बात पर लौटकर आता है कि किस प्रकार अधिलाभ को पूंजी का रूप देने के लिए पूंजी का संचयन और उसका पुनः निवेशन अनिवार्य है.
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लेकिन यह तभी संभव है कि जब कार्यदिवस दिवस के दौरान किए कार्य का कुल मूल्य श्रमिक की दैनिक मजदूरी से अधिक हो और मालिक के लिए अधिलाभ की सुनिश्चितता हो.
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वह बार-बार एक ही बात पर लौटकर आता है कि किस प्रकार अधिलाभ को पूंजी का रूप देने के लिए पूंजी का संचयन और उसका पुनः निवेशन अनिवार्य है.
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परिणाम यह होता है कि पूंजीपति की आरंभिक पूंजी चक्रीय पूंजी का रूप ले लेती है, जो पूंजीपति के लिए मजदूरों के श्रम को अधिलाभ में बदलने का काम करती है.
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परिणाम यह होता है कि पूंजीपति की आरंभिक पूंजी चक्रीय पूंजी का रूप ले लेती है, जो पूंजीपति के लिए मजदूरों के श्रम को अधिलाभ में बदलने का काम करती है.
50.
यदि कोई श्रमिक निर्धारित समय-सीमा के अंतर्गत केवल उतना कार्य करता है, जितने के लिए उसे मजदूरी प्राप्त होती है, उस स्थिति में पूंजीपति-स्वामी को उससे कोई अतिरिक्त अधिलाभ नहीं होगा.