मनुष्य की कामनाओं को पूर्ण करने वाली, पूर्ण चन्द्र से युक्त, अधूरेपन से पूर्णता की और ले चलने वाली तिथि को पूर्णिमा कहते हैं |-' पूरणं पूर्णिः, पुर्णिम मितीते पूर्णिमा ' | मत्स्य पुराण के इस उद्धरण को हेमाद्री के काल खंड के प्रष्ट-311 पर भली-भाँती देखा समझा जा सकता है | काल निर्णय के प्रष्ट-300 से 307 ;
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एक दिन जब वह नहीं रहेगा, तो इन किताबों में मुडे हुए पन्ने अपने-आप सीधे हो जाएँगे-पाठक की मुकम्मिल ज़िंदगी को अपने अधूरेपन से ढकते हुए…” -“जिस दिन मैं यह सोचकर भी लिखता रहूँगा, कि इसे पढकर सब लोग-मेरे मित्र और हितैषी अफ़सोस करेंगे, और आलोचक हँसी उडाएँगे-तभी मैं सफ़लता के चक्कर से मुक्त होकर कुछ ऎसा लिख पाऊँगा-जिसका कोई अर्थ है।”
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कोई नहीं ' का बटन दबाने से, यानी राईट टू रिजेक्ट का इस्तेमाल करने से क्या भारत या कोई प्रदेश भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा? यदि जनता के पास इन सवालों के जबाब नहीं हैं तो निश्चय ही लोकतंत्र अधूरा है और इस अधूरेपन से निजात पाने के लिए जनता जनार्दन को डॉ भीमराव आंबेडकर, महात्मा गाँधी, शहीद भगत सिंह, पंडित नेहरु, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, डॉ राम मनोहर लोहिया और ज्योति वसु को ठीक से समझना होगा।
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जो सच है, जो उस रात की उस घड़ी में सच था, वह अब महज़ अर्ध-स्वप्नों, स्मृतियों का पुंज रह गया है-आकारहीन, स्वरहीन-धुँधली धुन्ध के लोंदे सा! वह एक पुल था-हज़ारों सदियों के कुहरे को काटता हुआ, अतीत के उस सीमान्त को छूता हुआ-जहाँ मौन, शब्दों के अभाव से नहीं, उनके अधूरेपन से उत्पन्न होता है-ऐसा पुल जो जितना कुछ जोड़ता है, उतने में ही टूट जाता है।