मेहता का जीवन अब तक स्वाध्याय और चिन्तन में गुज़रा था, और सब कुछ कर चुकने के बाद और आत्मवाद तथा अनात्मवाद की ख़ूब छान-बीन कर लेने पर वह इसी तत्व पर पहुँच जाते थे कि प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों के बीच में जो सेवा-मार्ग है, चाहे उसे कर्मयोग ही कहो, वही जीवन को सार्थक कर सकता है, वही जीवन को ऊँचा और पवित्र बना सकता है।