तुमको शायद याद भी न हो पर मेरे जेहन में तो वो पल आज भी वहीँ का वहीँ ठहरा हुआ है.......कितने साल हो गए इस बात को शायद सोलह या सत्रह...........मैं हमेशा की तरह ख्यालों की दुनिया में गुम अपने आप में मस्त थी...........अपने काम में डूबी थी की पीछे से एक खनखनाती आवाज मुझसे टकराई.........मुड़ कर देखा तो वो तुम थे......पल भर को लगा कि मैं ये कहाँ आगई.......तुमने शायद मुझे देखा भी नहीं किसी और से उलझे रहे ।