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अभुक्त उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41. [11] बैंकों का तर्क है कि ऐसा इसलिए किया जाता है जिस से एक ग्राहक के महत्वपूर्ण लेनदेन (जैसे कि किराया या बंधक चेक या उपयोगिता भुगतान) के अभुक्त लौटाये जाने को रोकने के लिए किया जाता है, बावजूद इसके कि ऐसे कुछ लेनदेन गारंटीशुदा होते हैं.

42. (ब्रहमवैवर्त पुराण प्रकृति अ ३ ७) जब ब्रह्मा का दिन समाप्त होने पर सृष्टि की प्रलय होती हैं, तो अभुक्त कर्म बीजरूप में बने रहते हैं, जब फिर नए सिरे से सृष्टी रचना होती हैं तो उसी कर्म बीज से अंकुर फूटने लगते हैं.

43.रामबोला मंतव्यक-डॉ॰ श्याम सखा श्याम राम बोला-जी हाँ, यही नाम था उस अभागे बालक का जो संवत १५५४ की श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में बारह माह गर्भ में रहकर बान्दा जिले के राजापुर गांव के प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण दम्पति के यहां पैदा हुआ था।

44.यह बहुत ही सीमित परिस्थितियों में प्रदत्त होता है, इनमें सबसे आम (और बहुत ही कम अस्पष्ट) है भूमि की बिक्री के संबंध में; एक अभुक्त विक्रेता का खरीद कीमत के लिए भूमि पर एक न्यायसंगत ग्रहणाधिकार होता है, बावजूद इसके कि क्रेता का संपत्ति पर कब्जा हो चुका हो.

45.सूत्रधार नही, चन्द्रिका नही, न तो कुसुमॉ की सहचरियाँ है, ये जो शशधर के प्रकाश मॅ फूलॉ पर उतरी है, मनमोहिनी, अभुक्त प्रेम की जीवित प्रतिमाऍ है देवॉ की रण क्लांति मदिर नयनॉ से हरने वाली स्वर्ग-लोक की अप्सरियाँ, कामना काम के मन की.

46. [85] तंजानिया जैसे कुछ देशों ने इस मानक की दिशा में लंबी छलांग लगायी है, 2005 में वहां सिर्फ 20 फीसदी अभुक्त दाता थे जो 2007 में 80 फीसदी हो गये,[6] लेकिन वि.स्वा.सं. द्वारा किये गये सर्वेक्षण के 124 में से 68 देशों ने इस दिशा में थोड़ी या एकदम कोई प्रगति नहीं की है.

47.ज्येष्ठा नक्षत्र की अन्त की दो घडी तथा मूल नक्षत्र की आदि की दो घडी अभुक्त मूल कहलाती है, लेकिन यह बातें तब मानी जाती थीं,जब जातक के माता पिता पहले से ही धर्म कार्यों के अन्दर खुद को लगा कर रखते थे,मगर आज के जमाने में सभी भौतिक कारणों से और सब कुछ पोंगा पंडित की किताब मानने के कारण दोनो नक्षत्रों की चारों ही घडी अभुक्त मूल कहलाने लगी हैं,इन दो नक्षत्रों में पैदा होने वाला जातक अपने मामा या पिता परिवार को बरबाद कर देता है,अथवा खुद ही बरबाद हो जाता है।

48.ज्येष्ठा नक्षत्र की अन्त की दो घडी तथा मूल नक्षत्र की आदि की दो घडी अभुक्त मूल कहलाती है, लेकिन यह बातें तब मानी जाती थीं,जब जातक के माता पिता पहले से ही धर्म कार्यों के अन्दर खुद को लगा कर रखते थे,मगर आज के जमाने में सभी भौतिक कारणों से और सब कुछ पोंगा पंडित की किताब मानने के कारण दोनो नक्षत्रों की चारों ही घडी अभुक्त मूल कहलाने लगी हैं,इन दो नक्षत्रों में पैदा होने वाला जातक अपने मामा या पिता परिवार को बरबाद कर देता है,अथवा खुद ही बरबाद हो जाता है।

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