आधुनिक, खासकर अमूर्त कला पर पश्चिमप्रेरित होने का अशिक्षित आरोप लगाने वालों को इन किताबों से इसलिये भी गुजरना चाहिये कि इन चित्रकारों की भारतीयता का साक्षात हो सके)
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अमूर्त कला ' शीर्षक लेख में वे कहते हैं, ” कला की अभिव्यक्ति व्यक्ति और समाज की आशाओं-आकांक्षाओं और क्षणिक समर्थताओं का एक सजीव और गतिशील दर्पण है ।
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ऐसी एक कलाकृति थी काले ग्रेनाइट की वह आकृति जिसे साधारण जन तो खैर क्या खा कर समझते, अमूर्त कला के पारंगत पारखी भी जिसकी व्याख्या करने में चीं बोल जाते थे।
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इतना ही नहीं, अमूर्त कला में जहां हम अभी भी समय और कला के बारे में सोचते है, तंत्र उससे आगे जाकर प्रकाश और ध् वनि की कल् पनाओं को ले आया है।
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और फिर सिनेमा एक अमूर्त कला, और मनोरंजन से ज्यादा, कुछ और हो जाती है, अपने को, अपने समाज को, देखने का, और कला और जीवन के अंतर्संबंध को देखने का नजरिया बन जाती है अनायास.
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शेपारिओ ने कहा कि अमूर्त कला में भी एक ऐसा तत्त्व होना चाहिए जो कला का अतिक्रमण करे क्योंकि कला अंतत: आधुनिक जगत के साथ उसकी तमाम जटिलता के साथ सम्बंध बनाने की कोशिश करता है.
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शायद वे ढूंढेंगे नदी किसी पहाड़, किसी झरने किसी अमूर्त कला में पर कठिन होगा ढूँढ पाना अपना पता जब पास नहीं होगी कोई कविता यह कहती हुई समुद्र नहीं है नदी, समुद्र नहीं है नदी.
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[1] इस बीच अमूर्त कला, आधुनिकतावाद आदि को लेकर तीखी बहस 1936 से ही लगातार जारी थी जब न्यूयार्क के म्यूजियम ऑव मॉडर्न आर्ट ने क्यूबिज्म एंड एब्सट्रैक्ट आर्ट (क्यूरेटर अल्फ्रेड बर्र) प्रदर्शनी लगाई थी.
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हालांकि लिंडा नोच्लिन, [13] ग्रिसेल्डा पोलक,[14] और कैथरीन डे ज़ेघर[15] जैसे कला इतिहासकारों द्वारा अमूर्त कला के पुनर्पठन से आलोचनात्मक ढंग से पता चलता है कि आधुनिक कला में प्रमुख नवाचारों की शुरुआत करने वाली अग्रणी महिला कलाकारों को इसके इतिहास के आधिकारिक विवरणों द्वारा नज़रंदाज़ कर दिया गया था.
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हालांकि लिंडा नोच्लिन, [13] ग्रिसेल्डा पोलक,[14] और कैथरीन डे ज़ेघर[15] जैसे कला इतिहासकारों द्वारा अमूर्त कला के पुनर्पठन से आलोचनात्मक ढंग से पता चलता है कि आधुनिक कला में प्रमुख नवाचारों की शुरुआत करने वाली अग्रणी महिला कलाकारों को इसके इतिहास के आधिकारिक विवरणों द्वारा नज़रंदाज़ कर दिया गया था.