वहीं इस स्थिति का दूसरा पहलू यह है कि 1951 तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का मजदूर वर्ग में काम अर्थवादी भटकाव का शिकार रहा।
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अर्थवादी यदि एकदम उद्योगों का राष्ट्रीयकरण अथवा बिना मुआविजा दिए जमींदारी उन्मूलन चाहता है तो राजनीतिवादी अपने राजनीतिक कारणों से ऐसा करने में असमर्थ है।
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कर्त्तव् य-निर्वाह के नाम पर, ‘ कम्युनिस्ट ' कहलाने की लाज बचाने के लिए वे बस कुछ अर्थवादी अनुष्ठान मात्र करते रह सकते हैं।
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जो ट्रेड यूनियनवादी और अर्थवादी हैं वे कुल मिलाकर आर्थिक संघर्षों की चौहद्दी में ही मज़दूर चेतना और मज़दूर संघर्षों को कैद रखना चाहते हैं।
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जो ट्रेड यूनियनवादी और अर्थवादी हैं वे कुल मिलाकर आर्थिक संघर्षों की चौहद्दी में ही मज़दूर चेतना और मज़दूर संघर्षों को कैद रखना चाहते हैं।
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ऐसी अर्थवादी समझ बरकरार रही तो मजदूर वर्ग के पास कारखाने में वेतन और भत्तों के लिए लड़ने के अलावा कोई मुद्दा ही नहीं बचेगा!
47.
वजहें कई हैं: अर्थवादी मानसिकता जो कि ग्लोबल तंत्र की देन है, ने व्यक्ति की जीवन प्रणाली का बड़ा हिस्सा हथिया लिया है...
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लेनिन ने अर्थवादी अवसरवादियों के इन विचारों का पुरज़ोर खण्डन किया था और बताया था कि ” सामाजिक जनवाद मज़दूर आन्दोलन और समाजवाद का सहमेल है।
49.
इसी स्थिति को लेनिन और इस्क्रावादियों ने समाहार करके ठीक किया, जबकि पुराने अर्थवादी और नये अर्थवादी (मेंशेविक) इन्हीं हालात के पीछे-पीछे चलते रहे।
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इसी स्थिति को लेनिन और इस्क्रावादियों ने समाहार करके ठीक किया, जबकि पुराने अर्थवादी और नये अर्थवादी (मेंशेविक) इन्हीं हालात के पीछे-पीछे चलते रहे।