उन्होंने बताया कि अकुशल कर्मचारी को 4300 रुपये, अर्धकुशल को 4900 रुपये, कुशल को 5450 रुपये, तारवाला को 11,150 रुपये, बेलनिया को 7800 रुपये तथा पर्यवेक्षक को 7550 रुपये प्रतिमाह न्यूनतम मजदूरी देय होगी।
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इसी प्रकार अर्धकुशल श्रमिकों का मूल वेतन 43 रूपए प्रतिदिन से 96 रूपए बढ़ाकर 139 रूपए और कुशल श्रमिकों का मूल वेतन 47 रूपए प्रतिदिन से 102 रूपए बढ़ाकर 149 रूपए प्रतिदिन किया जाना प्रस्तावित किया गया है।
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उन्होंने आगामी एक जनवरी से अकुशल कामगार को 147 से बढ़ाकर 166 रुपये, अर्धकुशल कामगार को 157 से बढ़ाकर 176,कुशल कामगार को 167 से बढ़ाकर 186 और उच्च कुशल कामगार को 217 रुपये से बढ़ाकर 236 रुपये करने की घोषणा की।
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गहन विश्लेषण के उपरांत मार्क्स ने स्पष्ट किया था कि मशीनें दक्ष कामगार को हटाकर उसके स्थान पर अकुशल अथवा अर्धकुशल कर्मचारी को ले आती हैं, जिसकी परिणति मजदूरी में नकारात्मक प्रभाव के रूप में देखने को मिलती है.
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श्रमिकों के लिए पंजीयन शुल्क में कमी तथा विभिन्न योजनाओं की स्वीकृति के अधिकारों के विकेन्द्रीकरण के कारण अब भवन निर्माण से जुड़े कुशल एवं अर्धकुशल श्रमिकों को अब हिताधिकारी के रूप में पंजीयन कराने के लिए केवल पांच रूपये पंजीयन शुल्क देना होगा।
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20वीं शताब्दी के पिछले तीन दशकों के उत्प्रवास का स्वरूप बदलने लगा है और “नया डायस्पोरा” उभरा है जिसमें उच्च कौशल प्राप्त व्यावसायिक पश्चिमी देशों की ओर तथा अकुशल / अर्धकुशल कामगार खाड़ी, पश्चिम और दक्षिण पूर्व एशिया की और ठेके पर काम करने जा रहे हैं।
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उल्लेखनीय है कि सरकार का पूर्ववर्ती प्रस्ताव अकुशल, अर्धकुशल, कुशल व अतिकुशल के लिए क्रमशः 5500, 5800, 6400 व 7200 रुपए मासिक था, लेकिन घोषित हुआ 4980 / 5050, 5545 / 5330, 5915 / 5610 व शून्य / 5730 ।
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2005 में अस्तित्व में आई मनरेगा का मकसद ग्रामीण इलाकों के अर्धकुशल या अकुशल लोगों को साल में कम से कम 100 दिन का रोजगार देना था ताकि उनकी क्रयशक्ति बढ़े, गांवों से शहरों की ओर पलायन पर अंकुश लगे और अमीर-गरीब के बीच की खाई मिटे।
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उन्होंने आगामी एक जनवरी से अकुशल कामगार को 147 रुपये से बढ़ाकर 166 रूपये, अर्धकुशल कामगार को 157 रुपये से बढ़ाकर 176, कुशल कामगार को 167 रुपये से बढ़ाकर 186 रुपये और उच्च कुशल कामगार को दो सौ सत्ररह रुपये से बढ़ाकर 236 रुपये करने की घोषणा की ।
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उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में कर का भार काफी बढ़ जाने के कारण इन इकाईयां का व्यापार सम्भवत: प्रतिस्पर्धात्मक नहीं रह जायेगा, जिसका परिणाम यह होगा कि बहुत सी इकाईयां बन्दी की कगार पर पहुंच जायेंगी एवं इन इकाईयों में काम कर रहे कुशल एवं अर्धकुशल कारीगरों के बेरोजगार हो जायेंगे।