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अर्श रोग उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41.इस पर गुड्डी को आयुर्वेदिक अस्पताल के अर्श रोग विभाग में भर्ती किया गया जहां अर्श रोग विशेषज्ञों डॉ. सुभाषचन्द्र उपाध्याय, डॉ. रामानंद दाधीच एवं डॉ. गौरीशंकर कोलखंध्या ने इस बालिका के मस्से का क्षार सूत्रा चिकित्सा पध्दति से ऑपरेशन किया।

42.अर्श रोग की स्थायी चिकित्सा के लिए कुछ माह तक नियमित रूप से मिट्टी की पट्टी, एनिमा, कटि स्नान आदि द्वारा पेट साफ करें तथा अर्श निरोधिनी चिकित्सा के अन्तर्गत वर्णित-चोकर समेत आटे की रोटी, हरी सब्जी, बेल, पपीता, अमरूद सभी प्रकार के मौसमी फल आदि खायें ।

43.अधिक समय तक कुर्सी पर बैठकर काम करने, मांस, मछली, अंडे खाने, छोले-भठूरे, चाट-पकौड़ी, गोल-गप्पे, अधिक धूम्रपान व शराब पीने, रात्रि में अधिक जागने, अधिक घुड़सवारी, ऊंट पर लम्बी यात्रा करने से भी अर्श रोग की विकृति होती है।

44.नीम:-“नीम और महानीम के फल की गिरी, करन्जे के बीज की गिरी, निशोथ, हरड़-जिमीकन्द, श्वेत सुरमा, केशर-सभी को ६ माशे लेकर इनको गुलकन्द के रस में गोली बना लें ।.... शीतल जल में दोनों समय सेवन करने से बहुत जल्दी अर्श (बवासीर) भाग जाता है और अर्श रोग की जड़ जीवन में फिर नहीं होती ।”

45.अर्श रोग की उत्पत्ति पाचन क्रिया की विकृति के कारण होती हैं जब भोजन अनियमित रूप से किया जाता है, भोजन में अधिक उष्ण मिर्च-मसाले और अम्ल रस से बने खाद्या पदार्थो का सेवन किया जाता है, अधिक चाउमीन और फास्ट फूड का सेवन करते हैं तो वसा (चिकनाई) के अभाव में मल शुष्क और कठोर होने लगता है।

46.अर्श रोग एक बड़ा ही भयानक रोग होता है, मुख्या रूप से यह दो प्रकार का होता है, आंतरिक अर्श और बाहरी अर्श, आंतरिक अर्श को रक्तज अर्श भी कहते है, तथा बाहरी अर्श को सुखी या बादी अर्श भी कहते है, इस रोग के कारण-१ सहज (खानदानी) २ लगातार कब्ज के कारण ३ हाजमा ठीक न होने के कारण, लगातार दस्त लगने के कारण ।

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