कोपेनहेगन मैं ग्लोबल वार्मिंग्स पर चल रहे सम्मलेन मैं सभी विकसित, विकासशील और अविकसित देश ओधोगिक विकास की गति धीमी होने, सुख सुविधाओं के संसाधनों मैं कमी और देश का विकास अवरुद्ध होने अथवा धीमी होने की कीमत पर कार्बन उत्सर्जन की मात्रा मैं कमी ग्लोब...
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ब्राँड एम्बेस्डरों तथा रोल माडलों की सहायता से पहले अविकसित देश के उपभोक्ताओं की दिनचैर्या, जीवन पद्धति, रुचि, सोच-विचार, सामाजिक व्यवहार की परम्पराओं तथा धार्मिक आस्थाओं में परिवर्तन किये जाते हैं ताकि वह घरेलू उत्पाकों को नकार कर नये उत्पादकों के प्रयोग में अपनी ‘ शान ' समझने लगें।
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उसी समय नव-उपनिवेशवादी शक्तियां, मुख्यतः संयुक्त राज्य अमरीका, अपराध, हिंसा, सिनिसिज़्म, विकार और लंपटता का महिमामंडन और गुणगान करने वाली दूषित फ़िल्मों, पुस्तकों, पत्रिकाओं, संगीत, नृत्यों, फ़ैशनों के रूप में सांस्कृतिक कचरे, या ठीक-ठीक कहें तो असांस्कृतिक कचरे के आप्लावन से प्रत्येक अविकसित देश के समक्ष खड़े सांस्कृतिक शून्य को भरने की कोशिश कर रही हैं।
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क्या इसे इस तरह से भी देखा जाना चाहिए कि इन देशों का हित इसमें है कि विकासशील देश और अविकसित देश लगातार लड़ते रहें? एशिया और अफ्रीका में जगह-जगह हो रहे सशस्त्र संघर्षों-गृहयुद्ध से लेकर पड़ोसी देशों के बीच-का संबंध क्या इन्हीं हथियार के सौदागरों के हित से नहीं जुड़ा है?
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परंतु किसी देश की सारी जनता, विशेष कर गरीब एवं विकासशील या अविकसित देश की जनता, अपना बचाव कैसे कर पाएगी? क्या वह देश सुरक्षा के उपरोक्त उपायों का खर्च वहन कर पाएगा? चलिए, एक क्षण के लिए मान भी लिया जाए कि ऐसा संभव है तो क्या उपरोक्त उपाय पर्याप्त होंगे? नहीं, कदापि नहीं।
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इस समस्या से निबटने की दिशा में विकासशील और अविकसित देश भी बेहतर काम कर सकें, इसके लिए धन का प्रबंध करने की जिम्मेदारी विकसित देशों को उठानी होगी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन के मुताबिक २०२० तक जलवायु परिवर्तन संबंधी निधिकरण के लिए १०० बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष खर्च करना पड़ेगा, लेकिन आर्थिक मंदी ने इस राह में रोड़ा डाला है ।
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ऊर्जा और प्रदूषण की समस्या के कारण हम एक अत्यंत कठिन समस्या में फ़ँसे हैं-अधिक ऊर्जा पैदा करो तो वैश्विक तापन को बढ़ाओ, और ऊर्जा का उत्पादन नहीं बढ़ाओ तब विकासशील देश और अविकसित देश उसी असुविधाजनक संसार में रहेंगे, तभी भारत, ब्राज़ील और चीन तेजी से प्रौद्योगिकी का विकास करना चाहते हैं, किन्तु जिसके लिये अधिकाधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
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उसी समय नव-उपनिवेशवादी शक्तियां, मुख्यत: संयुक्त राज्य अमरीका, अपराध, हिंसा, सिनिसिज्म, विकार और लंपटता का महिमामंडन और गुणगान करने वाली दूषित फ़िल्मों, पुस्तकों, पत्रिकाओं, संगीत, नृत्यों, फ़ैशनों के रूप में सांस्कृतिक कचरे, या ठीक-ठीक कहें तो असांस्कृतिक कचरे के आप्लावन से प्रत्येक अविकसित देश के समक्ष खड़े सांस्कृतिक शून्य को भरने की कोशिश कर रही हैं।
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लेकिन ऐसे मामले तो रोज ही होते रहते है, आज की तारीख मे शिक्षा माफिया सब से ताकतवर हो रखा है, दोनो हाथो से लूटने मे लगे है अभिभावको को, बाते करते है की हम विदेशी स्कूलो के मुकाबले बहुत कम फीस लेते है लेकिन गैर ज़िम्मेदारी मे किसी अविकसित देश को भी पीछे छोड़ देते है, उपर से खुद की लापरवाही पर लीपापोती के लिए बच्चे का भविषय खर्राब करने से बाज नही आते.
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कोपेनहेगन मैं ग्लोबल वार्मिंग्स पर चल रहे सम्मलेन मैं सभी विकसित, विकासशील और अविकसित देश ओधोगिक विकास की गति धीमी होने, सुख सुविधाओं के संसाधनों मैं कमी और देश का विकास अवरुद्ध होने अथवा धीमी होने की कीमत पर कार्बन उत्सर्जन की मात्रा मैं कमी ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के उपायों को अपनाने मैं जो की प्रत्यक्ष रूप से देश और देश के लोगों को नुक्सान पहुचा सकते हैं आनाकानी कर रहे हैं और किसी भी इस प्रकार के किसी भी मसोदे पर एकमत और सहमत होते नही दिखाई दे रहे हैं ।