| 41. | सरगुन काया निर्गुण माया, असटंगी अधकारी | इनके मध्य रमईया साहिब, अविगत अलख मुरारी || २ ||
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| 42. | क्या क्या लिखा जाये? इतना लिखने के बाद भी अविगत गति कुछ कहत न जावै वाला मामला है.
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| 43. | अविगत गत कछु न आवै की तरह इसके बारे में बहुत कुछ कहते हुये भी सब कुछ कहना संभव नहीं है।
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| 44. | क्या क्या लिखा जाये? इतना लिखने के बाद भी अविगत गति कुछ कहत न जावै वाला मामला है.वर्णनातीत सा है इनके बारे में लिखना.
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| 45. | नाम-परिवर्तन से कहीं मूल वस्तु में भी परिवर्तन होता है, अविगत की विचित्र लीला के सम्बन्ध में कबीर ने कहा है-
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| 46. | वे कहते हैं कि ईश्वर अविगत, अगम, सर्वकर्ता, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक है जिसके बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता है।
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| 47. | अवतार के रूप में भी नहीं, क् यों कि-राम चरित तुम् हार बचन अगोचर बुद्धि पर, अविगत अकथ अपार नेति नेति बद कह।
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| 48. | वह अविगत है, अचल है, अनुपम है उसका वर्णन करना वैसे ही असम्भव है जैसे किसी गूंगे व्यक्ति के लिए स्वाद की अभिव्यक्ति कठिन है।
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| 49. | एक कर्म, अनुगमन मूक अविगत के संकेतॉ का, एक धर्म, अनुभवन निरंतर उस सुषमा, उस छवि का जो विकीर्ण सर्वत्र, केन्द्र बन तुम में झलक रही है.
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| 50. | जिनकी कोई राय नहीं बन पाती वे कह देते हैं-अविगत गति कछु कहत न आवै! लेकिन देखिये इलाहाबादी मिश्र जी ने भगवान की पोल-पट्टी खोलकर धर ही दी।
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