निगरानीकर्ता / अभियुक्त के द्वारा अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष एक प्रार्थनापत्र इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि चूंकि भारतीय दण्ड संहिता की धारा-504 का अपराध असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-155 के अन्तर्गत असंज्ञेय अपराध में बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के विवेचना नहीं की जा सकती है।
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निगरानीकर्ता / अभियुक्त के द्वारा अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष एक प्रार्थनापत्र इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि चूंकि भारतीय दण्ड संहिता की धारा-504 का अपराध असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-155 के अन्तर्गत असंज्ञेय अपराध में बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के विवेचना नहीं की जा सकती है।
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प्रश्नगत आदेश दिनांक 11-2-2009 के अवलोकन से स्पष्ट है कि अवर न्यायालय द्वारा निगरानीकर्ता का प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा-156 (3) दं0प्र0संहिता इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि प्रार्थना पत्र किसी संज्ञेय अपराध के कारित होने का उल्लेख नहीं करता है, बल्कि धारा-323,504,506 भा0दं0विधान का कारित होना प्रतीत होता है, जो कि असंज्ञेय अपराध है।
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दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-155 (4) में यह प्राविधानित है कि जहां पर दो या दो से अधिक अपराध घटित हों तथा उनमें से कोई एक संज्ञेय अपराध हो तो उस पूरे प्रकरण को संज्ञेय अपराध माना जायेगा और इस बात से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है कि शेष अपराध असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं।
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निगरानीकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का मुख्यतः यह तर्क कि दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत असंज्ञेय अपराध की बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के विवेचना नहीं की जा सकती है इसलिए विवेचक द्वारा जो आरोप पत्र भारतीय दण्ड संहिता की धारा-504 के अन्तर्गत निगरानीकर्ता के विरूद्ध प्रेषित किया गया था वह गलत था और उस पर न्यायालय द्वारा संज्ञान नहीं लिया जाना चाहिए था।
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है इसलिए विवेचक निगरानीकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का मुख्यतः यह तर्क कि दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत असंज्ञेय अपराध की बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के विवेचना नहीं की जा सकती द्वारा जो आरोप पत्र भारतीय दण्ड संहिता की धारा-504 के अन्तर्गत निगरानीकर्ता के विरूद्ध प्रेषित किया गया था वह गलत था और उस पर न्यायालय द्वारा संज्ञान नहीं लिया जाना चाहिए था।