व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन करीब 4000 सूत्रों में, जो आठ अध्यायों मे संख्या की दृष्टि से असमान रूप से विभाजित हैं, किया है।
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व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन करीब ४००० सूत्रों में, जो आठ अध्यायों मे संख्या की दृष्टि से असमान रूप से विभाजित हैं, किया है।
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व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन करीब ४००० सूत्रों में, जो आठ अध्यायों मे संख्या की दृष्टि से असमान रूप से विभाजित हैं, किया है।
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व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन करीब 4000 सूत्रों में, जो आठ अध्यायों मे संख्या की दृष्टि से असमान रूप से विभाजित हैं, किया है।
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व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन लगभग 4000 सूत्रों में किया है, जो आठ अध्यायों मे संख्या की दृष्टि से असमान रूप से विभाजित हैं।
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ठीक इसी प्रकार भौतिक / यांत्रिक सम्पन्नता को समाज की प्रगति मान लिए जाने का अर्थ हो जाता है सकल राष्ट्रीय उत्पाद को प्रगति का पैमाना मान लिया जाना जो कि असमान रूप से बँटे समाज में सबसे बड़ा छल होता है।
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कितना कलेजा इस माध्यम में उन्होंने पुरजोर तरीके से यह बात कहने को जुटाया होगा कि भारत का विकास आजादी के बाद असमान रूप से हुआ है और विकास की रोशनी जहां नहीं पहुंची, वहां रोशनी के मीठे पोपले ख्वाब वहां पहुंचे है।
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जिसे गुण-सूत्र 6 HLA क्षेत्र के साथ साथ दर्शाया गया है, जिसके अंतर्गत सिजोफ्रेनिया को विरले विलोपनों या DNA कड़ीयों के सूक्ष्म नकलताओं के साथ जोड़ा गया है (जिसे प्रति संख्या संस्करणों के नाम से भी जाना जाता है), और इसमें असमान रूप से न्यूरो सिग्नलींग और दिमाग के विकास के जीन्स शामिल होते हैं.
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पर उस सब से अधिक कोफ़्त इस बात की है कि लोग बाग इस बात का फ़ायदा उठा रहे हैं कि अब बङ्गलोर में विकास असमान रूप से हो रहा है, या यूँ कहें कि शहर के और राज्य के कुछ हिस्से, दूसरों के मुकाबले अधिक तेज़ी से विकसित हो रहे हैं, इसलिए एक फ़र्क है, लोगों के नज़रियों में।
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भूमंडलीय पूँजी और राष्ट्र राज्य की सीमाओं के बीच का विरोध कम से कम तीन बुनियादी अंतर्विरोधों से जुड़ा हुआ है-इजारेदारी और प्रतियोगिता के बीच, श्रम की प्रक्रिया के अधिकाधिक समाजीकरण और उसके उत्पाद के भेदभावपरक अधिग्रहण के बीच तथा अबाध रूप से बढ़ते वैश्विक श्रम विभाजन और असमान रूप से विकासशील पूँजी की वैश्विक व्यवस्था के निरंतर बदलते शक्ति केंद्रों द्वारा प्रभुता स्थापित करने की कोशिशों के बीच ।