आंत्रिक ज्वर के आक्रमण के समय भी कभी कभी अतिसार तीव्र रूप से हो जाता है, उस समय में भी इसका प्रयोग अंत्रों पर अच्छा कार्य करता है.
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आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) में शरीर में विभिन्न अंगों में पीड़ा, सिरदर्द, कब्ज, बैचेनी और बुखार के कम-ज्यादा होने के लक्षण दिखाई देते हैं।
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दूसरे संक्रामक रोग आंत्रिक ज्वर (टायफायड), ब्रोंकाइटिस, अधिक सर्दी-जुकाम से पीड़ित होने पर न्यूमोनिया के जीवाणु सीधे संक्रमण करके रोग की उत्पत्ति करते है।
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चाय, काफी तथा मदिरा का अत्यधिक सेवन, इन्फ्लुएंजा, आंत्रिक ज्वर एवं प्रवाहिका (पेचिस) आदि भी इसकी उत्पत्ति और विकास में योग देते हैं।
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अधिक समय तक दूषित और अधिक मिर्च-मसालों व अम्ल रस से बने वसायुक्त गरिष्ठ खाद्य पदार्थो का सेवन करने से आंत्रों को हानि पहुंचने से आंत्रिक ज्वर की उत्पत्ति होती है।
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आंत्रिक ज्वर (टायफाइड), खसरा, इंफ्लुएंजा, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस (श्वासनली की सूजन), फुफ्फुसावरण शोथ (प्लूरिसी) आदि रोगों में भी खांसी उत्पन्न होती है।
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आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) होने के अन्य कारण भी हैं जैसे-गन्दा पानी पीने से, बाहर का भोजन करने से, बाहर की खुली हुई चीजे अधिक खाने से होता है।
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आंत्रिक ज्वर (टायफायड)-संतरे की फांकों को कतर कर लगभग 250 ग्राम की मात्रा में रोजाना दिन में 1 बार लेने से आंत्रिक ज्वर (टायफायड) में लाभ होता है।
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आंत्रिक ज्वर (टायफायड)-संतरे की फांकों को कतर कर लगभग 250 ग्राम की मात्रा में रोजाना दिन में 1 बार लेने से आंत्रिक ज्वर (टायफायड) में लाभ होता है।
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आंत्रिक ज्वर, विषम ज्वर (मलेरिया), वात श्लैष्मिक ज्वर, डेंगू ज्वर, क्षय रोग, आमवात, अंशुघात (लू लगना) प्लेग आदि रोग के कारण ज्वर की उत्पत्ति होती है।