चेतना, विश्व-योजना, श्रम-तत्परता दे दुर्जन-हन्ता, सज्जन भारत,, सत-उर्वरता दे शब्दिका सड़ने लगा पानी पुनह, पुण्यघट रीते देवता के द्वार से लौटे कलश रीते पात्र का मंजन निरंतर, भावना से हृदय अंतर सुद्ध सात्विकता के पुजारी, हो गए इतिहास बीते कल क्रम से हारती हर जीत, आरती के उत्स का संगीत साधना सातत्य का पर्याय, अवरोध और व्यतिक्रम पलीते है समय की आत्मजा नियति, उम्र चढ़ते ही विदा 'सुमति' भंवर भवरों को नहीं भांवर, मधु विरत रसवंत सोम ही पीते गीत ह्रदय योग कर दे,हमें मीत कर दे