यह व्यक्ति चेतना ` इंसानियत की तलछट में छोड़े गए स्वाद ` से ` शराब ` खींचती है और आत्मविस्मृति, बेग़ानेपन और अवमूल्यन को परे धकेलती हुई एक मनुष्य व्यक्ति की स्मृति को क़ायम रखती है।
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प्रेम तभी होता है जब आत्मविस्मृति होती है, पूर्ण अंतर्मिलन होता है और वह भी केवल एक या दो के बीच वाला नहीं, अपितु उस परम सत्ता से अंतर्मिलन ; जो स्व के विस्मरण हुए बिना संभव नहीं. बेमौत....... किसको?
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आज उसने असंख्य कमल तोड़कर उनके हार बहिन को पहिनाये हैं, उसे देवी बनाकर पूजा है, सन्ध्या को आरक्त सूर्य को विदा दी है, झील में चन्द्रोदय देखा है, और सबसे बढ़कर-आज उसने सरस्वती को आत्मविस्मृति में गाते सुना है...
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मन-1. स्वार्थी मन तोड़ देता सम्बन्ध जानबूझकर........ 2. व्याकुल मन निस्तब्ध निशा आत्मविस्मृति के क्षण...... 3. युगों की भटकन मन क... “ बांछैं ” शब्द का अर्थ पूछियेगा तो अच्छे अ च्छों के होश उड़ जाते हैं.
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रचनाओं के गहरे भावों ने ऐसे बाँधा कि पढ़ चुकने के कुछ समय बाद भी आत्मविस्मृति की अवस्था में निश्चेष्ट बैठी रही......... सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं.आपका भावानुवाद है ही इतना सशक्त कि वह अनुवाद तो लगता ही नही.बहुत ही अच्छा,सुखकर लगा पढ़ना. आभार.
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कोयल आत्मविस्मृति में, अगले दिन, अपना सर्वस्व उड़ेल रही थी-जंगल में मंगल ला रही थी, कि योगी जी ने फूस की कुटिया को, बाहर से, बन्द कर दिया और आग लगा दी!लोगों ने आकर पूछा-“क्या हुआ? यह आग कौन पापी लगा गया?”"मैंने लगायी थी;
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पता नहीं, वह कार्मेन का अधिकृत प्रेम है, या मेरिया के हृदय में मिगेल की अनुपस्थिति के रिक्त को पूरा करनेवाला और अन्ततः मिगेल पर आश्रित भाव-पर मेरिया उसे कार्मेन पर बिखेरती है और बड़ी आत्मविस्मृति से (या शायद आत्म-विस्मृति के लिए ही?) बिखेरती है...
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जानती हैं आपकी अपहृताओं वाली बात पढ़ के गूगल किया तो आदरणीया रंजना जी के ब्लॉग पे जा के महानायक नाम से एक सुन्दर आलेख अभी अभी पढ़ के आई हूँ (ये हुआ सत्सं ग...!!:). निम्न अतिसुन्दर: आत्मविस्मृति के लोकान्तरों तक, सब हो गईं तुम्हारे नाम.
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प्रश्न है-अनबोला क्या? अनबोलता कौन? वैसे तो संपूर्ण संग्रह में एकतार व्याप्त स्व की तलाश इसे स्पष्ट कर देती है किंतु दबे हुए अस्तित्व से साक्षात्कार का प्रयास करती हुई कविता ‘ तो ' आधुनिक मानव के एकाकीपन, अजनबीपन और आत्मविस्मृति के विरूद्ध ‘ बोलने ' का प्रयास है-कुछ तो बतियाओ कि वह निहायत अबोला न रह जाये।
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अंग्रेज़ी दासता से स्वतंत्रता पश्चात समाज की विभिन्न भाव उन्नति के साथ नारी-शिक्षा, नारी-स्वास्थ्य, अत्याचार-उत्प्रीडन् से मुक्ति, बाल-शिक्षा, विभिन्न कुप्रथाओं की समाप्ति द्वारा आज नारी व भारतीय नारी पुनः अपनी आत्मविस्मृति, दैन्यता, अज्ञानता से बाहर आकर खुली हवा में सांस ले रही है | एवं समाज व पुरुष की अनधिकृत बेड़ियाँ तोड़ने में रत है |