उन्होंने देश बचाओ का नारा दिया और कहा सभ्रांत नागरिकों के बीच-कि कोई भी देशद्रोही नाग, सांप्रदायिक, आदमख़ोर बाघ, तस्कर भ्रष्टाचारी आपको दिखे तो हमें दिखाएँ, देश बताएँ! एक व्यक्ति ने उनकी इच्छापूर्ति का अनोखा उपाय किया-उन्हें दर्पण दिखा दिया।
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हम तंग आ गये हैं इन लोगों (शीला, वाड्रा, मोदी, ठाकरे, सोनिया, अनिल अंबानी, माया) की आदमख़ोर नीति से ।................................................ दिल्ली में लोगों का वेतन पाँच हज़ार (घर का किराया दो हज़ार, बिजली का बिल दो हज़ार,) बचा एक हज़ार-........ अब आप ही बताईये एक हज़ार रुपल्ली में कैसे परिवार चलेगा ।......
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साथियो! शिवकाशी के हमारे बेगुनाह मारे गये मज़दूर साथी हमसे पूछ रहे हैं: कब तक हम यूँ ही तिल-तिलकर मरने को जीना समझते रहेंगे? कब मिलेगा उन्हें इंसाफ़? कब होगा इस हत्यारी व्यवस्था का ख़ात्मा? क्या हम अपने बच्चों को यही ग़ुलामों-सी ज़िन्दगी देकर जायेंगे? अब यह समझ लेना होगा कि इस आदमख़ोर व्यवस्था की मौत ही हमारे जीने की शर्त है।
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तस्वीर: रेखा अवस्थी / 165 आदमख़ोर दुपहरी में पौधे: दीपक मंजुल / 169 रंगकर्मी कोश: मुरली मनोहर प्रसाद सिंह / 171 नया पथ: जुलाई-सितंबर '08 अंक संपादकीय आवाज़ जो गूंजती रहेगी महमूद दरवेश: चंचल चौहान महमूद दरवेश की कविता: 'मैं फि़लिस्तीन का आशिक़' तजुर्मा: एजाज़ अहमद अहमद फ़राज़: सुरेश कुमार अहमद फ़राज़ की तीन कविताएं वेणुगोपाल की दो कविताएं प्रस्तुति: सुधा सिंह परत-दर-परत विमर्श एस.डब्ल्यू. फ़ैलन के कोश की भूमिका अंग्रेज़ी से अनुवाद: