युवावस्था में काम आदि दोष बड़े प्रबल रहते हैं, इसलिए युवक को भले ही सुख न हो, किन्तु वृद्धावस्था में काम आदि दोषों के शान्त हो जाने पर एवं विनीत पुत्र, पौत्र आदि द्वारा घर में सेवा होने पर वृद्ध को अति आनन्द होता है, ऐसी शंका कर वृद्धावस्था में अनन्त दुःखों का विस्तार से वर्णन करने की इच्छा से पहले ' अपने बच्चों का नाश करने वाले साँपों को दूसरे के बच्चों पर दया कैसे हो सकती है ' इस न्याय से वृद्धावस्था अति कठोर है, यह कहते हैं।