जैसे आम आदि उन्नत वृक्षों की शाखापर स्थित, सूख जाने के कारण अनेक कण्टकों से आकीर्ण, पुष्पशून्य और फलरहित क्षीण मंजरी आनन्दप्रद नहीं होती, वैसे ही यह तृष्णा न आनन्दप्रद है, न सुखप्रद है और न फलप्रद है, किन्तु व्यर्थ-विस्तृत है, अमंगलकारिणी है और क्रूर है।।