कहा गया है कि भगवान के षष्ठ अवतार दत्तात्रेय ने अलर्क और प्रह्लाद आदि को ' आन्वीक्षिकी ' रूपा अध्यात्मविद्या का उपदेश दिया था-
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इसके अलावा कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में सांख्य और योग के साथ लोकायत का उल्लेख किया और इसे तर्क का विज्ञान अथवा आन्वीक्षिकी कहा।
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मुमुक्ष व्यक्ति को भी तत्त्वनिर्णय एवं उसकी दृढ़ता के लिए इस आन्वीक्षिकी विद्या का अध्ययन, धारणा तथा निरन्तर चिन्तन रूप अभ्यास आवश्यक है।
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इसके अलावा कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में सांख्य और योग के साथ लोकायत का उल्लेख किया और इसे तर्क का विज्ञान अथवा आन्वीक्षिकी कहा।
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अब की बार समुद्र से सम्पूर्ण भुवनों की एकमात्र अधीश्वरी दिव्यरूपा देवी महालक्ष्मी प्रकट हुईं, जिन्हें ब्रह्मवेत्ता पुरुष आन्वीक्षिकी (वेदान्त-विद्या) कहते हैं।
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अत: यह संभव है कि कौटिल्य के समय तक न्याय और वैशेषिक इन दोनों समानतन्त्र दर्शनों का उल्लेख आन्वीक्षिकी के अन्तर्गत ही कर दिया हो।
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[17] यहीं यह भी कहा गया है कि बलराम और श्रीकृष्ण धनुर्वेद तथा राजनीति के साथ आन्वीक्षिकी विद्या का भी अध्ययन करते थे।
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(न्या.भा. 1 सूत्र) इस वचन को उद्धृत कर आन्वीक्षिकी को समस्त विद्याओं का प्रकाशक, संपूर्ण कर्मों का साधक और समग्र धर्मों का आधार बताया है।
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अत: यह संभव है कि कौटिल्य के समय तक न्याय और वैशेषिक इन दोनों समानतन्त्र दर्शनों का उल्लेख आन्वीक्षिकी के अन्तर्गत ही कर दिया हो।
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इस आन्वीक्षिकी का अपना एक अलग वैशिष्ट्य है कि यह अध्यात्म विद्या होकर भी शास्त्रान्तर के परिज्ञानार्थ प्रक्रिया का निर्देश कर प्रदीप की तरह उपकारिका होती है।