ये सवर्ण हिन्दुओं के लिए शर्म की बात है की वो भारत के क्रमश: विखंडन को देख कर भी सीख नहीं ले रहा, उन्हें उंच-नीच, सामजिक और आर्थिक भेदभाव सम्बन्धी बुराइयों को दूर करने और सम्पूर्ण हिन्दू समाज की एकता के लिए प्रयतन्नशील होना चाहिए | from VATSAL VERMA (journalist cum news correspondent) ….
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माधव नागदा मानते हैं, “ परिवेश में घटित होने वाली कई घटनाएँ, लोगों की आदतें, परिस्थितियों के प्रति उनकी प्रतिक्रियाएँ, संघर्ष के तौर-तरीके, भोले अंधविश्वास, पाखण्ड, धूर्तता और सरलता, प्रेम और घृणा, जातीय और आर्थिक भेदभाव आदि कई ऐसी चीजें हैं, जो कथ्य के तौर पर किसी और विधा की माँग करने लगीं ”
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साथ में तज्जनित समस्याएं भी. परिणाम यह हुआ है कि इकीसवीं शताब्दी के पहले दशक की समापन बेला की ओर बढ़ते हुए हम सांस्कृतिक, सामाजिक अवमूल्यन, मानवीय मूल्यह्रास, घोर उपभोक्तावाद, पूंजी का अराजक विस्तार और उसकी तानाशाही, समाज के विभिन्न वर्गों के बीच बढ़ती सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक भेदभाव की खाई और तज्जनित महानैराश्य का वातावरण देख रहे हैं.
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जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देनेवाले कानून को यानि धारा-२ ५, जातिगत आर्थिक भेदभाव को सही साबित करनेवाली धारा-३ १ को तथा जातिगत आरक्षण की पेशकश करनेवाली धाराए-३ ४ ०, ३ ४ १ तथा धारा-३ ४ २ को भी निरस्त करना चाहिए, इसमें से एक भी धारा अगर संविधान में रहेगी तो जातिप्रथा का अंत करने का मनसुभा कभी भी कामयाब नही हो सकता.