खाने-पीने के साथ एंथ्रैक्स के स्पोर्स हमारे आहार नाल मे पहुँच कर मितली, खूनी उल्टी, खूनी दस्त, पेट दर्द आदि के लक्षण उत्पन्न करते हैं।
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इसके अतिरिक्त प्रकृति ने हमारे जनन, उत्सर्जन एवं आहार नाल के शरीर के बाहर खुलने वाले छिद्रों एवं उनसे जुड़ी नलिकाओं में हानिरहित सहभोजी बैक्टीरिया का जंगल उगा रखा है।
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इसके अतिरिक्त प्रकृति ने हमारे जनन, उत्सर्जन एवं आहार नाल के शरीर के बाहर खुलने वाले छिद्रों एवं उनसे जुड़ी नलिकाओं में हानिरहित सहभोजी बैक्टीरिया का जंगल उगा रखा है।
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हमारे नाखून, छोटी आहार नाल, सामने की ओर स्थित आँखें जो मस्तिष्क में त्रिआयामी दृश्य बनाती हैँ, हमें शिकार पकड़ने, चीरने व पचाने के लिये प्रकृति ने प्रदान किये हैं.
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भोजन को ग्रहण करनेवाली आहार नाल, जल-मिश्रित रक्त को प्रवाहित करने वाली नाड़ियाँ अग्नि को प्रदीप्त करनेवाले अंग और वायु को ग्रहण करनेवाला श्वसन तंत्र आदि सभी रिक्त होने के कारण ही अपने-अपने कार्य कलाप पूरे कर पाते हैं।
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60 श्वास एवं प्रश्वास पुरा करने में कशेरुक दंड या स्पाईनल कार्ड, आहार नाल या एलीमेंट्री कैनाल, श्वसन तंत्र या लैरिंगटिस सिस्टम, दृष्टि तंत्र या ओफ्थैल्मिक सिस्टम, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र या सेन्ट्रल नर्वज सिस्टम में समस्त संवेदनाओं का एक चक्र पुरा हो जाता है.
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किन्तु यदि अन्य विभिन्न अपथ्य खनिज पदार्थो के प्रयोग एवं उनके आहार नाल (Elementary Canal) में पाचन क्रिया (Digesting Multiplication) के उपरांत अवशोषण से शेष बचे पारे का गुर्दे से छन्नीकरण (Filter) नहीं होता है तो व्यक्ति कुष्ठ (Leprosy) रोग का मरीज़ हो जाता है.
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यथा-आहार नाल, श्वसन तथा प्रजनन तंत्र के विभिन्न हिस्सों में ये एक प्रकार के गाढे द्रव का श्राव करती है जो इन तंत्रों में घुसे जीवाणुओं तथा अन्य बाहरी तत्वों को फँसाने का कार्य करती हैं एवं अन्य प्रकार की कोशिकाएँ जिनके बाहरी सतह पर अत्यंत बारीक बालनुमा संरचनाएँ होती हैं, इन जीवाणुओं को इन अंगों से बाहर निकालने के प्रयास में लगी रहती हैं।
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यथा-आहार नाल, श्वसन तथा प्रजनन तंत्र के विभिन्न हिस्सों में ये एक प्रकार के गाढे द्रव का श्राव करती है जो इन तंत्रों में घुसे जीवाणुओं तथा अन्य बाहरी तत्वों को फँसाने का कार्य करती हैं एवं अन्य प्रकार की कोशिकाएँ जिनके बाहरी सतह पर अत्यंत बारीक बालनुमा संरचनाएँ होती हैं, इन जीवाणुओं को इन अंगों से बाहर निकालने के प्रयास में लगी रहती हैं।
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यदि कोई व्यक्ति इस विष (प्रोटीन) को मुख से ग्रहण करता है तो वह विष उसके आमाशय में चला जाता है तथा हमारे शरीर के अमाशय में मौजूद अम्ल व पाचक एन्जाइम उस प्रोटीन को पचा ले जाते है तथा वह आहार नाल से धीरे-धीरे शरीर से बाहर हो जाता है तथा रक्त में नहीं घुल पाने के कारण विष शरीर पर प्रभाव नहीं डाल पाता है।