ग़जाली का मानना है कि मुसलमानो के बीच इख़्तिलाफ़ को समाप्त करने और एकता का संचार करने का रास्ता मुसलिम समाज में इल्मी और संस्क्रतिक तरक़्क़ी है।
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वह लेखक जो मुसलिम एकता का ख़्याल नही रखते हैं या उनके लेख शत्रुता और इख़्तिलाफ़ को बढ़ावा देते हैं, वह बहुत बड़ा अपराध कर रहे हैं।
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इस्लाम के शुरूवाती दिनों में ही ख़िलाफ़त (रसूल के बाद उनका उत्ताधिकारी कौन) मुसलमानों के बीच इख़्तिलाफ़ का बड़ा कारण बना, और अब भी बना हुआ है।
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इस बस्ती में इख़्तिलाफ़ है कि वह कौन सी थी, हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि वह एक गाँव मिस्र और मदीना के बीच है.
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उन्होंने यह भी कहा कि शीअः मुसलमान हैं और शीओं और सुन्नियों दोनों में केवल फुरुएदीन में इख़्तिलाफ़ है और यह दोनों इस्लामी फ़िर्क़े कलिमए शहादतैन के क़ायल हैं।
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(2) इससे मालूम हुआ कि काफ़िर कोई भी हो, उनमें आपस में कितने ही इख़्तिलाफ़ हों, मुसलमानों के मुक़ाबले में वो सब एक है “
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जानकारी का विस्तार, इल्म और तरक़्क़ी, जीवन की वास्तविक्ताओं की जानकारी, और पुराने फ़ल्सफ़ियों तथा धर्म गुरूओं के रास्ते की जानकारी इख़्तिलाफ़ को हल करने की पहली सीढ़ी है।
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और इस लिये मैं तुम से बयान कर दूं कुछ वो बातें जिन में तुम इख़्तिलाफ़ रखते हो (14) (14) तौरात के आदेशों में से.
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इख़्तिलाफ़ की बेना पर हालात और फ़ितरत के तक़ाज़े जुदागाना होते हैं लेकिन हर इंसान को दूसरे के जज़्बात के पेशेनज़र अपने जज़्बात और अहसासात की मुकम्मल क़ुरबानी देनी पड़ती है।
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इख़्तिलाफ़ की बेना पर हालात और फ़ितरत के तक़ाज़े जुदागाना होते हैं लेकिन हर इंसान को दूसरे के जज़्बात के पेशेनज़र अपने जज़्बात और अहसासात की मुकम्मल क़ुरबानी देनी पड़ती है।