नतीजा आम तौर पर परिन्दे कीडे खाते हैं या शिकार मार कर बसर करते हैं कुछ परिन्दे जिनकी जाहिरी हालत से श्ुाबा हो सकता था उनका तजकरा कर दिया गया लिहाजा यह बात बख़ूबी रौशन हुई कि हर परिंदे की इब्तिदाई गिजा भी हेवानी गिजा है जो एक इशारा है उनके लिये हेवानी गिजा मुक़र्रर होने का कु़दरत से।
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अब तक उनकी प्रकाशित पुस्तकों में-शेर ग़ैर शेर और नस्र (1973), द सिक्रेट मिरर (अंग्रेज़ी में,1981), ग़ालिब अफ़साने की हिमायत में (1989), शेर शोर अंगेज़ (तीन भागों में, 1991-93), उर्दू का इब्तिदाई ज़माना (2001), गं़जे-ई-सोख्ता (शायरी), सावर और दूसरे अफ़साने (फिक्शन), कई चांद थे सर-ए-आसमां (नाॅवेल) और ज़दिदीयत कल और आज (2007) हैं।
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हां, साइंस और टेक्नोलॉजी में ख़ासी तरक्की हुई है और बहुत-सी हैरतअंगेज़ चीजें ईजाद हो गयी हैं, वे चीज़ें जिनकी आपने इब्तिदाई शक्लें देखी थीं और जिनका ज़िक्र आपने ‘ स्वराज के लिए ' और कुछ दूसरे अफ़सानों में किया था (कण्डोम और प्रोजेक्टर वगै़रह) अब ख़ासी तरक्कीयाफ्ता सूरतों में आम तौर से मिलती हैं, कश्मीर का मस्अला भी वहीं का वहीं है, जहाँ आपके ज़माने में था और चचा साम (अमेरिका) से हमारे ताल्लुक़ात भी वैसे ही हैं।
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मुर्ग़ का बच्चा यह जंगल में तो मिसल अपने हम-जिन्सों तीतर, बुटेर, कौआ वगैरह की तरह पैदा होने के बाद नन्हे कीडों पर बसर करता है अलबत्ता हमारे घरों में कीडे उस को मयस्सर नहीं आते है इसलिए मजबूरन मुर्गी दाना चुगाती है मगर इब्तिदाई पैदाइश की खुराक उसकी वही हेवानी गिजा है जो उसको अण्डे के अंदर मिलती है नीज इस आलम मजबूरी मंे जिन दानों को यह चुगता है अव्वल मुर्ग़ी उस दाने को लेकर अपनी दहन की रतूबत से उसे तर कर देती है इसके बाद वह बच्चा उसको चुग लेता है।