साहित्यकार के जिन वृहत्तर अथवा गम्भीरतर उत्तरदायित्वों की ओर मैं संकेत करनाचाहता हूँ उनका सम्बन्ध केवल व्यवस्था के स्थायित्व और व्यवस्थित परिवर्तन के नियोजन से नहीं है, बल्कि उन आधारभूत मूल्यों से है जिनसे इसका निर्णय होता है कि वांछित दिशाएँ कौन-सी हैं, और जहाँ वांछित परिणामों और हितों की टकराहट दीखती है, वहाँ पर अभिमूल्यों का उच्चावच क्रम कैसे निर्धारित होता है।
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भाई अमरेन्द्र जी आपने महत्त्वपूर्ण बात कही है, पर मुश्किल यह है कि सारी बातें बड़ी जल्दी शब्दों के घुमेर में पड़कर रह जाती हैं | वस्तुतः यह प्रश्न भाषा का नहीं कवि के अपने जीवन का है, इसे नकारना संभव न होगा कि कविता केवल बुद्धिविलास नहीं, वह अपने मूल में कहीं न कहीं कवि की जिंदगी को समेटे रहती है | काव्य-पदार्थ तो अनुभूति की उच्चावच स्थितियों से ही उपजता है, फिर फिर अपनी प्रकृति के अनुरूप भाषा में ढलकर सार्वजनिक होता है ;