कुछ दिनों तक हैदराबाद में प्रधानयार्य का काम उत्तम रीति से करने के बाद आप स्थायी रूप से डेकन कालेज, पूना में आचार्य पद पर नियुक्त हुए और सेवा निवृत्त होने तक यहीं पर अध्यापन करते रहे।
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कुछ दिनों तक हैदराबाद में प्रधानयार्य का काम उत्तम रीति से करने के बाद आप स्थायी रूप से डेकन कालेज, पूना में आचार्य पद पर नियुक्त हुए और सेवा निवृत्त होने तक यहीं पर अध्यापन करते रहे।
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इसमें जटामासी, गुग्गुल, चन्दन, अगुरु-चूर्ण, कपूर, शिलाजीत, मधु, कुङ्कुम तथा घी मिलाकर उत्तम रीति से बनाया गया है॥ 11 ॥ देवी त्रिपुरसुन्दरि! तुम्हारी प्रसन्नता के लिये यहाँ यह दीप प्रकाशित हो रहा है।
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इसका अर्थ है कि एक उपदेशक के रूप मॆं मैं निंरतर इस प्रश्न का सामना करता हूं: “मैं परमेश्वर की महिमा का चित्रण इतनी उत्तम रीति से कैसे कर सकता हूं कि अधिक से अधिक लोग इसे देखें और इसके द्वारा परिवर्तित हों?
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इन चारों बातों का जितनी उत्तम रीति से पालन होता है उतनी ही अधिक देव-प्रतिमायें दैवी-शक्ति-सम्पन्न होंगी और उपासकों का उतना ही अधिक कल्याण होगा, इन बातों की जितनी उपेक्षा होती है उतनी ही मूर्तियाँ दैवी कलाहीन हो जाती हैं।
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द्युलोक और पृथिवी लोक के विस्तार के लिये प्रजा पुष्ट हो | हे परमात्मन्! आप उत्तम रीति से समस्त प्रजा एवं राष्ट्र को धारण करने में समर्थ हैं | आप हिंसारहित हैं | मनुष्यों के लिये हितकारी ऐश्वर्य हमें प्रदान करें! आप हमें ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व तथा
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वास्तविक गौ रक्षा तो यह है कि अधिकाधिक दूध देने वाली गौओं और खेती का कार्य उत्तम रीति से कर सकने योग्य बैलों की संख्या में यथाशक्ति वृद्धि की जाए, क्योंकि भारतवासियों के जीवन निर्वाह का आधार मुख्यतः अन्ना और दूध, ये दो ही पदार्थ हैं।
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अनुग्रह-शिष्य यदि इन पाँच अंगों से गुरु की पूजा करता है, तो गुरु उस पर पाँच प्रकार का अनुग्रह करता है-1. सदाचार की शिक्षा देता है, 2. उत्तम रीति से विद्या पढ़ाता है, 3. जितनी भी विद्याएँ उसे आती हैं, उन सबका ज्ञान शिष्य को करा देता है, 4.
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आइना, कंघी, सुगंधित तेलों की शीशियाँ, भाँति ' भाति के इत्र, हाथों के कंगन, गले का चंद्रहार, जड़ाऊ, एक रूपहला पानदान, लिखने पढने के सामान से भरी एक संदूकची, किस्से-कहानी की कितबों, इनके अतिरिक्त और भी बहुत-सी चीजें बड़ी उत्तम रीति से सजाकर धरी हुइ थी।
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दो भुजाएँ इसकी शाखाएँ हैं उन्नत कन्धा इसका तना है, दो नेत्र इसके खोखले हैं, मस्तक इसका बड़ा भारी फल है, यह दाँतरूपी पक्षियों के बैठने के स्तम्भ के समान उत्तम रीति से खड़ा है, यह दो कर्णरूपी कठफोड़ा पक्षियों की चोंच के आघात से जर्जरित (छिद्रयुक्त-सा) रीति से खड़ा है, हाथ और पैर इसके सुन्दर पत्ते हैं, रोग आदि इसमें लता स्थानीय हैं।