(१) उदरशूल को दूर करने के लिये पीपल के पत्तों का चूर्ण १ तोला, सोंठ १ तोला, नौसादर १ तोला-सबको कपड़छान कर लें ।
42.
इससे भी पेट एवं बडी आंत के रोगों में काफी लाभ मिलता है, जैसेः-विबंध, अर्श् ा-भगन्दर, गुल्प, उदरशूल, आध्मान (आफरा) इत्यादि ।
43.
उदरशूल-पीपल के दो तीन पत्ते कूटकर गुड़ में गोली बनाकर खिलाकर गर्म जल वा गर्म गोदुग्ध पिलाने से उदर पीड़ा (पेट का दर्द) दूर होती है ।
44.
सावधानीः अत्यंत शीत काल में या कफप्रधान प्रकृति के मनुष्य द्वारा घी का सेवन रात्रि में किया गया तो यह अफरा, अरुचि, उदरशूल और पांडुरोग को उत्पन्न करता है।
45.
10 से 15 ग्राम की मात्रा में 15 दिनों तक सेवन करने से अम्लपित्त, उदरशूल (पेट का दर्द) और यकृत वृद्धि (लीवर का बढ़ना) से छुटकारा मिलता है।
46.
पेट दर्द: वात प्रकोप से होने वाले उदरशूल में ऊपर बताए गए मुलहठी के काढ़े का सेवन आधा सुबह और आधा शाम को करने से बादी का उदरशूल ठीक हो जाता है।
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पेट दर्द: वात प्रकोप से होने वाले उदरशूल में ऊपर बताए गए मुलहठी के काढ़े का सेवन आधा सुबह और आधा शाम को करने से बादी का उदरशूल ठीक हो जाता है।
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इसे सुबह-शाम करीब 2 ग्राम की मात्रा में उतना ही पानी मिलाकर सेवन करने से शीघ्र ही वातगुल्म (वायु का गोला) और उदरशूल (पेट के दर्द) का नाश होता है।
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हालाँकि अधिकतर शिशु कभी-कभी चिड़चिड़े हो जाते हैं या उदरशूल से पीड़ित दिखाई पड़ते हैं फिरभी यह देखना मूल्यवान हो सकता है कि कुछ प्रकार के खाद्य तो इसे नहीं उत्पन्न कर रहे हैं।
50.
हींग अपच, उदरशूल, अजीर्ण, दांत दर्द, जुकाम, खांसी, सर्दी के कारण सिरदर्द, बिच्छू, बर्र आदि के जहरीले प्रभाव और जलन को कम करने में काम आती है।