मानव स्वभाव है यह-प्रेमचन्द ने भी कहा था-कि-“मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है-जो एक बार दिख कर घटते-घटते लुप्त हो जाता है, असली कमाई तो ऊपर की आमदनी से है”
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मैं डर रहा था, ये सब कैसे कर पाऊंगा, अगर कहीं पकड़ा गया या परिचितों, यार दोस्तों ने यह बात कहीं सरेआम की दी तो, लेकिन भीतर कहीं खुश भी था कि ऊपर की आमदनी वाली नौकरी है.
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वे किसी की नौकरी लगने पर उससे यह प्रश् न नहीं करते थे कि वेतन के सिवाय ऊपर की आमदनी भी कुछ है या नहीं? इजलास पर जा कर जर-जमीन के लिए गंगा-तुलसी उठाना घोर पाप समझते थे।
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अब दो लाख से पांच लाख रुपये तक 10 प्रतिशत की दर से आयकर देना होगा, जबकि पांच लाख से 10 लाख पर 20 प्रतिशत और 10 लाख से ऊपर की आमदनी पर 30 प्रतिशत कर चुकाना होगा.
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वेतन तो दस रुपए से ज्यादा न था, पर एक हजार साल की ऊपर की आमदनी थी, सैकड़ों आदमियों पर हुकूमत, चार-चार प्यादे हाजिर, बेगार में सारा काम हो जाता था, थानेदार तक कुरसी देते थे, यह चैन उन्हें और कहाँ था।
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इस समय दो से पांच लाख रुपए तक की आमदनी वालों से 10 फीसदी, जबकि पांच से 10 लाख रुपए तक की आमदनी वालों से 20 फीसदी और इससे ऊपर की आमदनी वालों से 30 फीसदी की दर से कर वसूला जाता है।
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मैं डर रहा था, ये सब कैसे कर पाऊंगा, अगर कहीं पकड़ा गया या परिचितों, यार दोस् तों ने यह बात कहीं सरेआम की दी तो, लेकिन भीतर कहीं खुश भी था कि ऊपर की आमदनी वाली नौकरी है.
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इसका सबसे बड़ा सबूत तो गरीबी रेखा के बारे में योजना आयोग का सुप्रीम कोर्ट में दिया गया वह हलफनामा है जिसमें ग्रामीण इलाकों में प्रति दिन २६ और शहरी इलाकों में ३२ रूपये से ऊपर की आमदनी वाले लोगों को गरीबी रेखा से बाहर कर दिया गया.
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शायद आप भूल गए होंगे, मुझे याद है, ५० साल पहेले भी, लड़की वाला पूछता था, लड़का क्या करता है, वे शान से बताते थे तनखा २०० रूपए और ऊपर की आमदनी भी है, और लरकी वाला निश्चिन्त हो कर रिश्ता कर देता था.
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इसका सबसे बड़ा सबूत तो गरीबी रेखा के बारे में योजना आयोग का सुप्रीम कोर्ट में दिया गया वह हलफनामा है जिसमें ग्रामीण इलाकों में प्रति दिन २ ६ और शहरी इलाकों में ३ २ रूपये से ऊपर की आमदनी वाले लोगों को गरीबी रेखा से बाहर कर दिया गया.