● संन्यास के बजाए दुनियादारी में नैतिकता का उपयोग अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) का आह्वान एक और अहम शिक्षा हमें देता है और वह यह है कि नैतिकता संन्यासियों के एकांत वास के लिए नहीं है, दरवेशों की ख़ानक़ाहों के लिए नहीं है, बल्कि दुनिया की ज़िन्दगी के हर विभाग में बरतने के लिए है, जिस आध्यात्मिक और नैतिक उच्चता को दुनिया संन्यासियों और दरवेशों में खोजती थी, अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) उसे हुकूमत की गद्दी पर और अदालत की कुर्सी पर उठा लाए।
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हमारे जैन धर्म में भी ये करोडो रुपियो से मंदिर बनाने की परम्परा है धनिक भामाशाह मंदिरों पर करोडो खार्चा कर देते है मगर कभी उन जैन संतो तक नहीं पहुँचते जो सारी दुनियादारी से अलग एकांत वास में अपने जीवन को साधना और तपस्या में लीन किये हुए मुस्किलो से दिन गुजारते है जबकि ये ही संत अनेक संतो से ज्यादा ज्ञानी और शुद्ध विचारवान होते है | अगर ऐसे संत को उसका समान के साथ जीवन जीने का साधन उपलब्ध करवा दे तो किसी मंदिर बनवाने से भी ज्यादा पुन्य का फल प्राप्त होगा |