निरादर कलंकित करना कलंकित करना लज्जित करना लज्जा अपमान करना लानत लज्जा का कारण नकार दिया जाना हया लज्जित करना शर्मिंदित होना शर्म लज्जित होना सर्मिंदगी अपमानित करना शर्मसार लज्जित होना शर्मिंदा होना शर्मिंदगी महसूस होना शर्मिंदगी दिखाना नकार दिया जाना सर्मिंदित होना मुकर जाना शर्मिंदगी दिखाना कम दिखाना
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निरादर कलंकित करना कलंकित करना लज्जित करना लज्जा अपमान करना लानत लज्जा का कारण नकार दिया जाना हया लज्जित करना शर्मिंदित होना शर्म लज्जित होना सर्मिंदगी अपमानित करना शर्मसार लज्जित होना शर्मिंदा होना शर्मिंदगी महसूस होना शर्मिंदगी दिखाना नकार दिया जाना सर्मिंदित होना मुकर जाना शर्मिंदगी दिखाना कम दिखाना
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कभी नहीं लेकिन अपने ही साथियो पर हमला करना हो, उसको कलंकित करना हो तो देखिये गुंजन जी कैसे आगे हो गये? जिनका एन. एस. डी की नंगी धांधली और नाईसाफ़ी के कारण नहीं हुआ वैसे लोगों को पागल और अयोग्य करार दे रहे हैं?
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इसके अलावा अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए दलितों की ओट लेना उन्हें कलंकित करना है | क्या दलित लोग कहते हैं कि भ्रष्टाचार करो? भारत के दलितों के जीवन में जितनी सच्चाई है, कितने अन्य लोगों में है? उनके पास छिपाने के लिए क्या है?
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इसी प्रकार पांचवें अंक में दुश्यन्त शकुन्तला का परित्याग करते हुए कहते हैं कि ‘हे तपस्विनी, क्या तुम वैसे ही अपने कुल को कलंकित करना और मुझे पतित करना चाहती हो, जैसे तट को तोड़कर बहने वाली नदी तट के वृक्ष को तो गिराती ही है और अपने जल को भी मलिन कर लेती है।
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इसी प्रकार पांचवें अंक में दुश्यन्त शकुन्तला का परित्याग करते हुए कहते हैं कि ‘हे तपस्विनी, क्या तुम वैसे ही अपने कुल को कलंकित करना और मुझे पतित करना चाहती हो, जैसे तट को तोड़कर बहने वाली नदी तट के वृक्ष को तो गिराती ही है और अपने जल को भी मलिन कर लेती है।
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बौद्ध रामयण ' दशरथ जातक कथा के रूप में आती है, इसमें दशरथ की पुत्री भी है, 'शान्ता', जिससे दशरथ के ही पुत्र राम, अनेक घटनाओं के बाद, विवाह करते हैं-बौद्ध रामायण का उद्देश्य तो स्पष्ट ही झूठी घटना के द्वारा राम को कलंकित करना है,क्योंकि पुराणों के अनुसार शान्ता राजा रोमपाद की पुत्री है
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इसी प्रकार पांचवें अंक में दुश्यन्त शकुन्तला का परित्याग करते हुए कहते हैं कि ‘ हे तपस्विनी, क्या तुम वैसे ही अपने कुल को कलंकित करना और मुझे पतित करना चाहती हो, जैसे तट को तोड़कर बहने वाली नदी तट के वृक्ष को तो गिराती ही है और अपने जल को भी मलिन कर लेती है।
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इस प्रकार प्रतिरक्षा सचिव बनाम समाचार-पत्र संरक्षक, (१ ९ ८ ५) १ ए सी ३३ ९ (३ ४ ७) में, लार्ड डिप्लॉक ने यह सम्परीक्षण किया कि अवमान की प्रजातियां, जिसमें न्यायाधीशों को कलंकित करना भी शामिल है, वास्तव में इंग्लेैण्ड में अप्रचलित है और उसकी उपेक्षा की जा सकती है ।
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स्वार्थपरता को न छोड़कर कर्तव्य-पालन एवं लोक-सेवा द्वारा उऋण होने की कठिनाई या मेहनत से जी चुराकर जो आलस्य और हराम-खोरी पर उतर आते हैं और कहते हैं संसार तो माया है, दूसरों के लिए हम कोई प्रयत्न क्यों करें, ऐसे लोगों को साधु महात्मा या त्यागी बैरागी कहना भी इन पवित्र शब्दों को कलंकित करना है ।।