कला के विषय में उनके विचार थे-' कला, जीवन को नहीं, बल्कि देखने वाले को व्यक्त करती है अर्थात तब किसी कलात्मक कृति पर लोग विभिन्ना मत प्रकट करते हैं तब ही कृति की पहचान निर्धारित होती है कि वास्तव में वह कैसी है, आकर्षक या उलझी हुई।'
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कला के विषय में उनके विचार थे-' कला, जीवन को नहीं, बल्कि देखने वाले को व्यक्त करती है अर्थात तब किसी कलात्मक कृति पर लोग विभिन्ना मत प्रकट करते हैं तब ही कृति की पहचान निर्धारित होती है कि वास्तव में वह कैसी है, आकर्षक या उलझी हुई।'
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(न) एक मूर्तिकला, या अन्य कलात्मक कृति जो कि धारा 2 के वाक्य (ग) के उपवाक्य (iii) में समाहित हो (अन्य शिल्पकारिता की कृति) की पेंटिंग, ड्राइंग, उत्कीर्णन या छायाचित्र का निर्माण या प्रकाशन, यदि वह कृति स्थाई रुप से किसी सार्वजनिक स्थल पर या परिसर जिस में जनता की आवाजाही है स्थित है;
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इसी बात को लघुकथा के संदर्भ में रचना-विधान के रूप में व्याख्यायित करते हुए निशांतर कहते हैं-‘‘लघुकथा और उसके कथानक के उपयुर्क्त अंतर को और स्पष्ट किया जाय तो यह निष्कर्ष निकलता है कि कच्चे माल ‘कथानक‘‘ को तैयार माल ‘‘लघुकथा‘‘ में परिवर्तित करने में जिन रूपात्मक प्रविधियों का उपयोग किया जाता है उसे समग्र रूप से तकनीक‘‘या रचना-विधान‘‘ कहा जाता है।‘‘2 इसको दूसरे शब्दों में यों कहा जाय कि-‘‘किसी कलात्मक कृति के प्रस्तुत करने के विशिष्ट ढंग को कौशल कहते हैं अर्थात उस कृति के रूप-निर्माण और ढलन आदि की विशिष्ट योजना को कौशल या‘तकनीक‘ कहते हैं।.........