अब कात्यायनी को इसका जवाब देना चाहिये … अगर स्मारिका वाली बात ग़लत है तो उसका खण्डन किया जाना चाहिये … वैसे यह उन संस्थानोंख़ के रिकार्ड में उपलब्ध होगा कि कितना विज्ञापन दिया गया? विज्ञापनों के ज़रिये हुई कमाई और सिर्फ़ पैसा कमाने के लिये छापे गये आह्वान के अंको की ख़बर अगर सच है तो यह धौंस-डपट से साहित्यिक बिरादरी को कट्रोल करने वाले इस गिरोह की कलई खोलने के लिये काफी होना चाहिये … उम्मीद की जानी चाहिये कि गाली-गलौज़ और धमकियों से ऊपर उठ कर यह कुनबा कोई ठोस जवाब देगा …