अतः केवल सन्देह के आधार पर ही अभियुक्त पप्पू उर्फ सुरेन्द्र को दोशी नही माना जा सकता है जबकि पत्रावली पर अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यो की संवीक्षा से अभियुक्तगण द्वारा कथित घटना कारित करना सन्देह के परे साबित नही होता है जिसके फलस्वरूप अभियुक्तगण पर लगाया गया भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 सपठित धारा 34 एवं धारा 376 सपठित धारा 511 का आरोप सन्देह के परे साबित नही होता है।
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धारा 304 भाग-2 भारतीय दंड संहिता में यह अवधारित किया गया है कि यदि वह कार्य इस ज्ञान के साथ कि उससे मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, किन्तु मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, कारित करने के किसी आशय के बिना किया जाये, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी या जुमाने से या दोनो से दंडित किया जायेगा।
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धारा 304 भाग-2 भारतीय दंड संहिता में यह अवधारित किया गया है कि यदि वह कार्य इस ज्ञान के साथ कि उससे मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, किन्तु मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, कारित करने के किसी आशय के बिना किया जाये, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी या जुमाने से या दोनो से दंडित किया जायेगा।
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उक्त नजीर के मामले के तथ्यों के अनुसार प्रतिरक्षा मे यह कथन किया गया था कि मृतका अपने मायके जाना चाहती थी परन्तु अभियुक्त द्वारा उसे मायके जाने की अनुमति नही दी गई जो मृतका की मृत्यु का कारण था जिसे माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वीकार किया गया क्योंकि उक्त नजीर के मामले मे अभियोजन अभियुक्त द्वारा दहेज की मॉग करना तथा अभियुक्त द्वारा अपनी पत्नी के प्रति क्रूरता कारित करना साबित नही कर सका था।
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और बहुत से ऐसे मामले जिसमे पीड़ित की मृत्यु हत्या की श्रेणी में नहीं आ पाती क्योंकि हत्या के लिए धारा ३ ०० कहती है कि शारीरिक क्षति इस आशय से जिससे मृत्यु कारित करना संभाव्य है या वह प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त है या वह कार्य इतना आसन्न संकट है कि मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर देगा जिससे मृत्यु कारित होनी संभाव्य है, ऐसे में आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय बनाम टी.
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अथवा यदि वह कार्य इस ज्ञान के साथ कि उससे मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, किन्तु मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु कारित करना संभाव्य है, कारित करने के आशय के बिना किया जाये, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जायेगा. '' इस प्रकार भारतीय दंड विधान मर्सी किलिंग को धारा ३ ० ४ के अंतर्गत सदोष हत्या का अपराध मानता है और इसकी मंजूरी नहीं देता है.
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अथवा यदि वह कार्य इस ज्ञान के साथ कि उससे मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, किन्तु मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु कारित करना संभाव्य है, कारित करने के आशय के बिना किया जाये, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जायेगा. '' इस प्रकार भारतीय दंड विधान मर्सी किलिंग को धारा ३ ० ४ के अंतर्गत सदोष हत्या का अपराध मानता है और इसकी मंजूरी नहीं देता है.
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धारा-156 (3) दं0प्र0संहिता का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने पर न्यायालय को इस प्रार्थना पत्र में लगाये गये आरोपों की वास्तविकता को नहीं देखना है, केवल यह देखना है कि क्या दिये गये प्रार्थना पत्र के आधार पर कोई संज्ञय अपराध कारित हो रहा है या नहीं और अगर पत्रावली पर उपलब्ध तथ्यों के आधार पर कोई संज्ञेय अपराध कारित करना स्पष्ट होता है तो मजिस्टेट को मुकदमा दर्ज कर तफ्तीश किये जाने के आदेश पारित करने चाहिए, यह आवश्यक नहीं हैं कि पहले कोई प्रार्थना पत्र थाने में दिया जाय या महिला हैल्प लाईन में प्रस्तुत किया जाय।