आज हम जहां हैं, वहां होने की तार्किकता, अपने आदि से कार्य-कारण संबंध तलाश कर, उसमें छूटे स्थानों को पूरी आस्था सहित लोक और जन से पूरित कर, यानि चेतना के स्तर पर अपने इतिहास से अपने वर्तमान का सातत्य पाकर हम वास्तविक अर्थों में मनुज कहलाने के अधिकारी हो सकते हैं।
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पुतिन की दबंगई के चलते भले ही सीरिया इस इतिहास को दोहराने से बच गया है लेकिन क्या दुनिया इराक में हुई इन मौतों पर आत्ममंथन करेगी? यदि नहीं तो वह इस कार्य-कारण संबंध को भी ठीक से नहीं जान पाएगी कि मध्य-पूर्व में अलकायदा सहित तमाम आतंकी संगठन व चरमपंथी समूह असली ताकत कहां से हासिल कर रहे हैं।