इस मेले में जहां भीतरी शिमला, कुल्लू तथा जनजातीय जिला किन्नौर और लाहौल-स्पिति के लोगों के जीवन की सांस्कृतिक झलक देखने को मिलती है, वहीं इस मेले में भारतवर्ष के लगभग हर कोने के व्यापारी लाखों रुपए का व्यापार भी करते हैं परंतु मुख्य रूप से इस मेले में पशम, ऊन, ऊन के बने पट्टू, पट्टियां शालें, दुपट्टे, गुदमें, दाहडू के अतिरिक्त चिलगोजे, बादाम आदि सूखे मेवों के साथ-साथ राजमाह, पहाड़ी चाय, काला जीरा तथा सेब का क्रय-विक्रय होता है।
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घटक द्रव्य ः-सेंधानमक, विडनमक, पीपल, पिपलामूल, तेजपात, काला जीरा, तालीस पत्र, नागकेशर, और अम्लवेत सभी द्रव्य 24-24 ग्राम सौचल नमक-60 ग्राम जीरा, काली मिर्च, सोंठ-12-12 ग्राम समुद्री नमक-96 ग्राम अनार दाना-48 ग्राम बड़ी इलायची, दाल चीनी-6-6 ग्राम सभी वस्तुऔं का कपड़ छन चूर्ण तैयार करके फिर नीबू का रस लेकर उसमें सारे चूर्ण को मिला कर सीरक या छाया मे सुखा लें इसे आयुर्वेदिक भाषा में भावना देना कहते हैं।
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पहले तो बहुत-बहुत धन्यवाद रूपेशजी, मै योगेश हूँ!मैंने आपकी 05/04/2008 की पोस्ट पढ़ी थी,जिसकी समस्या मेरी समस्या से मिलती जुलती थी!उसमे आपने इस प्रकार इलाज बताया:योग:-सेंधा नमक १५० ग्राम + अकरकरा २५ ग्राम + सोंठ २५ ग्राम + छोटी पीपर २५ ग्राम + काली मिर्च २५ ग्राम + सफेद जीरा २५ ग्राम + शोधित गंधक २५ ग्राम + काला जीरा २५ ग्राम + शुद्ध हींग ढाई ग्राम + रस सिन्दूर छह ग्राम + नींबू का सत्व(टाटरी) सौ ग्राम; इन सब पदार्थों को लेकर मजबूत हाथों से घुटाई करा के मिश्रित कर लें।