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कूजन उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41.शायद कबूतरों को भी यह गीत अच्छा लगता था, क्योंकि वे चुग्गा खत्म हो जाने के बाद भी उसका कंठस्वर सुनने के लिये वहाँ बैठे रहते या उनमें से कोई नर कबूतर गर्दन फुलाकर ज़ोर-ज़ोर से कूजन करने लगता।

42.सरसों का फूलना, पादपों में नये कोंपल आना, फूलों का खिलना, पक्षियों का कूजन कुमाऊँ में ऊँचाई और निचाई के अनुसार आगे-पीछे होता रहता है, किन्तु प्रकृति के सँवरने-सजने में देर सबेर भले ही हो जाये, हमारे गाँव के दो कदीमी ऋतु रैंण गाने [...]

43.अब बगुले हैं या पण्डे हैं या कउए हैं या हैं वकील या नर्सिंग होम, नए युग की बेहूदा पर मुश्किल दलील नर्म भोले मृगछौनों के आखेटोत्सुक लूमड़ सियार खग कूजन भी हो रहा लीन! अब बोल यार बस बहुत हुआ कुछ तो ख़ुद को झकझोर यार!

44.जहाँ नित्य उत्सव हो रहे हैं, नीरवता में भी लताएँ अंगड़ाइयाँ लेती रहती हैं, पुष्प सुरभित होते रहते हैं, नदियाँ बलखाती रहती हैं, पक्षी कूजन करते रहते हैं, ऐसी उस प्रकृति से सीखने की आवश्यकता होती है, कि प्रेम तत्त्व क्या होता है.

45.अब बगुले हैं या पण्डे हैं या कउए हैं या हैं वकील या नर्सिंग होम, नये युग की बेहूदा पर मुश्किल दलील नर्म भोले मृगछौनों के आखेटोत्सुक लूमड़ सियार खग कूजन भी हो रहा लीन! अब बोल यार बस बहुत हुआ कुछ तो ख़ुद को झकझोर यार!

46.सरसों का फूलना, पादपों में नये कोंपल आना, फूलों का खिलना, पक्षियों का कूजन कुमाऊँ में ऊँचाई और निचाई के अनुसार आगे-पीछे होता रहता है, किन्तु प्रकृति के सँवरने-सजने में देर सबेर भले ही हो जाये, हमारे गाँव के दो कदीमी ऋतु रैंण गाने […]

47.आज तक मां के आनन्द गीतों में फूलों के रंगों में वनपाखी के कूजन में सुख-दुख के आंसुओं में खोजता रहा जीवन का अर्थ बनाए नए नए शब्द-सेतु जिस पर चलते हुए महामानव के चरणों में अर्पित किए विविधवर्णी अभिव्यक्ति के फूल और समष्टि से पाया आशीष दान हृदय की झोली भर स्नेह-शब्द-शस्त् र...

48.अंकुर की आत्माभिव्यक्ति मैं अंकुर हूं मिट्टी के गर्भ से छोटे से बीज से जन्मा, बादल, सूर्य-आलोक-ताप, हवा और धूप की बाहों ने सहारा दिया अंकुरित होकर ऊपर उठते ही हवा ने चुम्बन दिया, रोशनी ने आशिर्वाद पंछी मेरे इर्द गिर्द अपने कल कूजन से प्रसन्नता प्रकट करने लगे कि जब बड़ा होकर वृक्ष बनूंगा, तब वे मेरी शाख पर अपने नीड़ का निर्माण करेंगे

49.धीरे-धीरे पसरता है वही कुछ अन्तरंग क्षण जिसमें खिल उठते हैं असंख्य व्यथा-सुमन चहुँ ओर गूँजने लगता है करुण-कूजन ओह! बड़ा बेचैन हो जाता है मन और वही यादें हो जाती हैं इतनी सघन कि बहने लगती है व्याकुल नदियाँ बन तब दृष्टि-परिधि तक दिखता है केवल विरह-वन.... और क्या कहूँ...? या कैसे कहूँ.... कि मैं विरक्ता तुम्हारे होने के हर मरिचिजल पर भरने लगती हूँ विकल-कुलाँचे निरीह मृगी बन.

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