पेड़ों की इन्हीं कतारों के मध्य अमलतास का एक अकेला पेड़ है-मझोले कद का जो दिनोंदिन लघुकाय-कृषकाय होता जा रहा है और इस साल तो इस पर बहुत कम फूल आए हैं-इतने कम गुच्छे कि उन्हें आसानी से गिना जा सकता है।
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रिश् तेदारों के आने पर भाभी जी से मिलने जब भी कालेज जाता था तो भाभी जी कालेज परिसर में जहां भी मिलती थी, कृषकाय बुजुर्ग रिश् तेदार के धूलधूसरित पैरों को, सिर में पल् लू ढांक कर, पारंपरिक रूप से झुककर चरण स् पर्श करती थी ।
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हम निकलने ही वाले थे कि अग्रज कवि कृष्ण कल्पित का संदेश आ गया-आई आई सी एनेक्सी में जब वह प्रसिद्ध बाजीगर हाथ की सफाई दिखा रहा था तब जिस कृषकाय वृद्ध को दरवाजे से खदेड दिया गया, उसे गौर से देखो, वही शमशेर मुजप्फफरनगरी है शायद।
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यह वाक्य मन को झकझोर देता है कि “ कहानी में कथावाचक को रेलवे स्टेशन पर एक कलाकृति दिखती है, जो पास जाने पर एक कृषकाय भिखारी परिवार निकलता है ” आपकी समीक्षा की शैली और भाषा दोनों सहज, सरस है और विषयवस्तु के साथ पूरा न्याय करती है।
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हम निकलने ही वाले थे कि अग्रज कवि कृष्ण कल्पित का संदेश आ गया-आई आई सी एनेक्सी में जब वह प्रसिद्ध बाजीगर हाथ की सफाई दिखा रहा था तब जिस कृषकाय वृद्ध को दरवाजे से खदेड दिया गया, उसे गौर से देखो, वही शमशेर मुजप्फफरनगरी है शायद।
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हम निकलने ही वाले थे कि अग्रज कवि कृष् ण कल्पित का संदेश आ गया-आई आई सी एनेक् सी में जब वह प्रसिद्ध बाजीगर हाथ की सफाई दिखा रहा था तब जिस कृषकाय वृद्ध को दरवाजे से खदेड दिया गया, उसे गौर से देखो, वही शमशेर मुजप् फफरनगरी है शायद।
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00000 18. यात्रा कृषकाय होने लगी है काया शिथिल होने लगे हैं सब अंग-प्रत्यंग फिर भी बढ़ते रहने की जिजिविषा के कारण मैं चलता जा रहा हूँ पथ पर अनवरत लगातार बिना यह स्वीकारे कि साँसे जब अवरुद्ध होने लगे आँखों के आगे छाने लगे अँधेरा तब तो मुझे समझ लेना चाहिये कि मेरी यात्रा अब पूर्ण हो चुकी है ।
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तुम ठीक ही कहती थी कि मुझे ठीक से सोने का भी सलीका नहीं मेरे लोहे से सिर्फ सुई बन सकती है वो भी महज जानवरों के काँटों के लिए मेरे चिंतन से भी यही फल निकला कि शयन का सौम्य तरीका तो सीख लूँ पर अब भी वैसे ही सोता हूँ जैसे कोई कृषकाय मूषक किसी विशाल शयनागार में अकुलाता।
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होम्योपैथी में इस रोग का निदान भी अन्य रोगों की तरह रोगी की अवस्था, रंग, रूप, स्त्री, पुरुष, स्थूल, कृषकाय अथवा नार्मल स्वास्थ्य, साथ ही रोगी कैसे वातावरण में रहता है या नेचर ऑफ वर्क क्या है, इन सब चीजों पर विचार करते हुए सटीक दवाओं का चयन कर रोग के समूल नाश कर शारीरिक इक्युनिटी को बढ़ा देता है, जिससे इस्नोफीलिया अपने नार्मल सीमा (1-6 प्रतिशत) के अंदर ही रहता है।
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अरे सिर्फ वे ही क्यों देशभक्ति और ईमानदारी का राग अलापें, जबकि हर तरफ बेईमानी का विष फैला है और जब सफेदपोशों को अपनी सफेदी में दाग का डर नहीं तो खाकी रंग में कोई दाग दिखता कहाँ है. '' '' ई लीजिये बाबू जी! आ गवा तोहार पंजाबी मारकि ट. '' उस काले कलूटे कृषकाय रिक्शेवाले की हांफती और कंपकंपाती आवाज़ ने धनञ्जय के चिंतन में खलल डाला.