इस गाने से दो दो हाथ करने को मीका सिंह लाए हैं वार्निंग का वो गाना जिसके बोल हैं-सारी दुनिया छोड़ के तेरा फोन उठाया है, तेरा दिल लेने के ख़ातिर लोन उठाया है, कोई तो कीमत होगी तेरे हुस्न की बोल दे, बेबी टेल मी हाउ मच हाउ मच...
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की पातें और उस के आगे मैंने लगाई जाली के बिछो बीछ एक परिंदे के जोड़े ने अपना घोंसला बना रखा था, यह बात तो मुझे पता थी.बल्कि उसकी सुरक्षा के ख़ातिर मैंने पंखे का स्विच ऊपरसे ही बंद कर रखा था.(पहली ही तसवीर में पंखा,गुसलखाना और वहाँ बना घोंसला नज़र आ रहा है).
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क्या आपको इस विरोधाभास पर हैरानी नहीं हो रही कि एक तरफ़ तो अमृतजी सटीक अनुवाद के ख़ातिर ग़ैरज़रूरी तौर पर बेहद अश्लील शब्द बरतते हैं और दूसरी तरफ़ एक अश्लील बयान को हल्का कर देते हैं? और आप कहते हैं: “ … जबकि मूल उपन्यास में येलनिक लिखा है कि … ” ।
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तुम मेरी ज़िंदगी का अविभाज्य हिस्सा बन चुकी हो! हरपल तुम्हारे संग हूँ.....रहूँगा!“ दीपा:” मैंने उसकी बाहों में अपनेआपको कितना महफूज़ पाया मै बता नही सकती!लगा,सारी मुश्किलें,सवालात अपनेआप हल हो जायेंगे! थोड़े से विश्वास की ज़रुरत है!नरेंद्र ने बच्चों को लेके मुझे निश्चिन्त करने के ख़ातिर कहा,की,वो अपनी जायदाद एक हिस्सा तुरंत बच्चों के नाम कर देगा और मुझे
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कांग्रेस ने वोटो की राजनीति के ख़ातिर जल्दबाजी मे लिया निर्णय साबित हुआ है, अगर राज्य का विभाजन करना था तो पहेले सभी नेताओ से मिलकर दोनो प्रदेशो की समस्या का समाधान करना चाहिये था, यहाँ जमीन का सवाल नही है किसको कितनी मिली लेकिन समस्या है इनफ्रास्टक्चर की क्या दोनो राज्य को समान सुविधा मिली है?
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पगला घोड़ा लो मरी भी हो गई लाल लिखते लिखते ये स्याही अब मैं भी सड़कों पे आया मैं भी बन बैठा राही जो टूट गया घर मेरा और टूटा मेरा घेरा तो मैं भी बन असीम सा नाचूँ धरा गगन का फेरा अब मेरे भी बच्चे मर मैं जैसे पगला घोड़ा पहली बार यूँ बिन लगाम इस कोने उस दौड़ा अपने लिए और बस अपने पागलपन के ख़ातिर ये देखो ये गिरा पड़ा घुड़सवार जो शातिर...
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रोज़ा इंसानी ज़िंदगी में तक़वा पैदा करने का सबसे अच्छा तरीका है कि यह अमल केवल ख़ुदा के लिए होता है और इसमें दिखावा करने की संभावना नहीं है रोज़ा केवल नियत है और नियत की जानकारी केवल परवरदिगार को है फिर रोज़ा इच्छाशक्ति की स्थिरता का सबसे अच्छा माध्यम है जहां इंसान ख़ुदा के आदेश के ख़ातिर ज़िंदगी की आवश्यकताओं और ज़िन्दगी के आनंद सब छोड़ देता है कि यही भावना पूरे साल रह जाए तो तक़वा की सबसे ऊंची मंजिल मिल सकती है।
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उंगली पकड़ कर जिनको चलना सिखाया पग-पग पर जिन्हें संभलना सिखाया जिनका जूठा खाया, लोरी सुनाई बापू से जिनकी कमियाँ छिपाई रात भर सीने से लगा चुप कराती रही बच्चों का पेट भर हर्षाती रही दो पाटों के बीच सदा पिसती रही आँखों से दर्द बनकर रिसती रही बापू के हज़ार सितम झेलती थी पर बच्चों के ख़ातिर कुछ न बोलती थी माँ ऐसी ख़ुशियाँ लुटाने वाली माँ को कभी कोई ख़ुशी नहीं मिली जिस माँ से रोशन था सारा घर उस माँ के जीवन की सन्ध्या को आख़िरकार कभी रोशनी नहीं मिली
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! अपने अधिकार बनाये रखने के ख़ातिर, किस क़दर स्वार्थी हो सकते हैं लोग? कोई पूछे इनसे, ये जो, पोस्टिंग्स पे तामील करते हैं, कि, २ ६ / ११ / २ ०० ८ के बाद से तक़रीबन ८ माह, ATS के प्रमुख की पोस्ट रिक्त क्यों रही? क्या इस पोस्ट को पढने वाले पाठक अपनी आवाज़ उठा सकते हैं? पाकिस्तान को क्या कहें? जब हमारे ही तथा कथित ' ज़िम्मेदार ' अफ़सर अपने ' ऐसे ऐतिहासिक निर्णयों ' से उस देशकी सहायता में जुटे हों तो?