उसमें उन्मेषशालिनी प्रतिभा भी है और बिम्ब-संयोजन की कलात्मक क्षमता भी. सूर के सौन्दर्य-बोध को मानसिक और कल्पनाशील स्वीकार करना और तुलसी के सौन्दर्य-बोध को लौकिक और जीवन-सापेक्ष समझाना सूर के साथ अन्याय करना है.
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हमारे विचार से इन शब्दों का प्रयोग ही गलत किया गया है, और ऐसा करना ही दोनों दलों के साथ अन्याय करना है, क्योंकि इन शब्दों से दोनों ही दलों के सिद्धान्तों का स्पष्ट बोध नहीं हो पाता।
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एक तरफ इन्हें 60-70 हजार रुपए तक का वेतन देकर रखा जा रहा है, वही नए युवा अध्यापकों को 15-20 हजार रुपए प्रति माह की नौकरी भी नहीं देना क्या उनके व राष्ट्र के साथ अन्याय करना नहीं है।
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किंतु इस कविता को उसके इस सीमित अर्थ तक रखना इस कविता के साथ अन्याय करना होगा क्योंकि इस् कविता के गर्भ में इस दौर और उससे जुडे विषयों के गूढ अर्थ भी हैं इसलिये यह एक दुखद उपन्यास की तरह जैसे एक पूरी गाथा है उसके पूरे इतिहास और भूगोल के साथ सम्झने की जरूरत है.
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लोग यह भी नहीं सोचते कि सीता के साथ अन्याय करना, सीता को युगों-युगों तक निष्पाप प्रमाणित करना था.”चित्रा जी के शब्दों में-“आज का आलोचक मन पूछता है कि राम ने स्वयं सिंहासन क्यों नहीं त्याग दिया बजे सीता को त्यागने के? वे स्वयं सिंहासन प् र्बैठे राज-भोग क्यों करते रहे?इस मत के पीछे कुछ अपरिपक्वता और कुछ श्रेष्ठ राजनैतिक परम्पराओं एवं संवैधानिक अभिसमयों का अज्ञान भी है.
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लोग यह भी नहीं सोचते कि सीता के साथ अन्याय करना, सीता को युगों-युगों तक निष्पाप प्रमाणित करना था.” चित्रा जी के शब्दों में-“आज का आलोचक मन पूछता है कि राम ने स्वयं सिंहासन क्यों नहीं त्याग दिया बजे सीता को त्यागने के? वे स्वयं सिंहासन प् र्बैठे राज-भोग क्यों करते रहे?इस मत के पीछे कुछ अपरिपक्वता और कुछ श्रेष्ठ राजनैतिक परम्पराओं एवं संवैधानिक अभिसमयों का अज्ञान भी है.
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यदि गढ़वाल में दरिया वाणी में मन्तर पढ़े जायेंगे तो राज्शथानी भाषा का प्रभाव गढवाली पर आना ही था जिस तरह कर्मकांड की संस्कृत भाषा ने गढ़वाली भाषा को प्रभावित किया उसी तरह नाथ साहित्य ने गढवाली भाषा को प्रभावित किया किन्तु यह कहना कि नाथ साहित्य गढवाली कि आदि भाषा है इतिहास व भाषा के दोनों के साथ अन्याय करना होगा यदि ऐसा होता तो अन्य लोक साहित्य में भी हमें इसी तरह क़ी भाषा के दर्शन होते.
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@ “अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी की बात से में तो सहमत नही हूँ! ”......... असहमति आपका मौलिक अधिकार है मेरी औकात नहीं है इस मौलिक अधिकार को 'चैलेन्ज' करने की.............. पर यही मौलिक अधिकार मुझे भी मिला है! @ “किसी भी रचनाकार की रचना में गुण-दोष निकालना हमारा काम नही है!”.......... यह तो सरासर गलत कहा आपने, '' रचना में गुण-दोष '' निकलना ही तो आलोचना है, आपको मालूम होना चाहिए कि आलोचना साहित्य की एक सशक्त विधा है, आपका ऐसा कहना विधा के साथ अन्याय करना है..