ना तो संस्कृति की कोई मात्रा, या और न ही प्रशिक्षण की पीढ़ियों के बीच सभ्यता, सेमाइट्स अफ्रीकी, और कुछ सीलोन बढ़ा सकता है, जैसे मानव नमूनों बुशमेन, वेद्धास की जनजातियों के रूप में आर्य, स्तर, के लिए एक ही बौद्धिक, और तुरानियन कहा जाता है तो.
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ना तो संस्कृति की कोई मात्रा, या और न ही प्रशिक्षण की पीढ़ियों के बीच सभ्यता, सेमाइट्स अफ्रीकी, और कुछ सीलोन बढ़ा सकता है, जैसे मानव नमूनों बुशमेन, वेद्धास की जनजातियों के रूप में आर्य, स्तर, के लिए एक ही बौद्धिक, और तुरानियन कहा जाता है तो.
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4. जो वर्ण छोटे स्वर से अंत होता है (अ इ उ आदि) उसे लघु तथा बाकि सारे गुरु कहे जाते है अर्थात जिस किसी वर्ण के पीछे कोई मात्रा न हो वो लघु (Light) तथा मात्रा वाले गुरु (Heavy) कहे जाते है जैसे: मे, री आदि
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मात्राएँ स्वरों के बदले हुए स्वरूप को मात्रा कहते हैं स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं-स्वर मात्राएँ शब्द अ × कम आ ा काम इ ि किसलय ई ी खीर उ ु गुलाब ऊ ू भूल ऋ ृ तृण ए े केश ऐ ै है ओ ो चोर औ ौ चौखट अ वर्ण (स्वर) की कोई मात्रा नहीं होती।
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यदि न्यायाधीश इमानदार और सही है (और लेग न्यायाधीश की सत्यनिष्ठा के बारे में अत्यन्त शीघ्रता से जानते है), तो अपनिर्देशित और आधारहीन आलोचना की कोई मात्रा उसे अपकीर्ति में नहीं ला सकता या उसके प्राधिकार को स्थिर नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा प्राधिकार व्यापक रुप से जनता के विश्वास से ही आता है ।
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यदि इनमें से किसी व्यंजन / अक्षर को आधा लिखना है तो सिर्फ उसके साथ a टाईप न करें और यदि कोई मात्रा लगानी है तो उस अक्षर को टाईप करते समय अंत में a की जगह तालिका-1 में दिए गए स्वर, जिसकी मात्रा लगानी है, के लिए प्रयोग किए जाने वाले बटनों का प्रयोग करें ।
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मात्राएँ स्वरों के बदले हुए स्वरूप को मात्रा कहते हैं स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं-स्वर मात्राएँ शब्द अ ×-कम आ ा-काम इ ि-किसलय ई ी-खीर उ ु-गुलाब ऊ ू-भूल ऋ ृ-तृण ए े-केश ऐ ै-है ओ ो-चोर औ ौ-चौखट अ वर्ण (स्वर) की कोई मात्रा नहीं होती।
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एक बार किसी मित्र के साथ वे मराठी फिल्म कलाकार शरद तलवलकर के घर गए, मित्र ने परिचय करवाया “ ये मेरे मित्र शरद तलवलकर है, सज्जन पुरुष है ”, इस पर पु ल बोल दिए: “ सज्जन तो होंगे ही, देखिये जिस नाम में कोई भी उलटी सीधी टेडी मेढ़ी कोई मात्रा तक नहीं लगी है, वो माणूस सरल ही तो होगा ” ।
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ज्ञान की कोई मात्रा ऐसी रेखा बनने में सफल नहीं हो सकी जो टकराव होने से बचाए; पहले से ही, “पंजाब और बंगाल के सांप्रदायिक दंगों ने ब्रिटिश की त्वरित और सम्मानजनक वापसी की उम्मीद को फीका कर दिया था”.[19] “दक्षिण एशिया के कई उपनिवेशोत्तर विकारों के बीज, प्रत्यक्ष और परोक्ष ब्रिटिश शासन की दो सदियों में, बहुत पहले ही बोए गए थे, लेकिन, जैसा कि हर पुस्तक ने दर्शाया है, विभाजन की जटिल त्रासदी का कोई भी अंश अपरिहार्य नहीं था.”[20]