शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने एवं आम लोगों के अन्दर शिक्षा के प्रति रूचि पैदा करने के लिए भले ही सरकार द्वारा लाख परियोजनाएं चलाई जा रही हों मगर सतही सच्चाई तो यही है कि आज भी देश के बहुसंख्यक प्राथमिक विद्द्यालय बदहाली एवं खराब व्यवस्था के दंश को झेल रहे हैं!
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इनके आगे पैसा फेक कर बड़ी से बड़ी राशि का बकाया बिल कम से कम राशि में परिवर्तित कर तुरंत भुगतान करके सीना चौड़ा कर मूंछे ताव देते हुए लोग जब खराब व्यवस्था और केस्को की लापरवाही को पानी पी पी कर कोसते दीखते है तो प्रगतिशील भारत की भविष्य की छवि सोच कर सिहरन पैदा होती है.
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संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्रा-छात्राओं को जन संचार एवं पत्राकारिता पढ़ाने के लिए बुलाए गए सुभाष अग्रवाल को विश्वविद्यालय ने शासनादेशानुसार 25 हजार रुपये प्रतिमाह का निर्धरित मानदेय भी नहीं दिया, बल्कि इसकी जगह जब उन्हंे आठ हजार रुपये प्रतिमाह देने की कोशिश की गई तो उन्हांेने क्षुब्ध् होकर एवं विश्वविद्यालय की खराब व्यवस्था के चलते त्यागपत्रा दे दिया है।