साहित्य प्रेमी बुखारा के रहने वाले और अपनी रुबाईयों के लिए मशहुर उम्मर खय्याम को जरुर जानते होंगे, दरअसल वो खगोलविद् थे और उन्होंने भी बड़े जतन से भारतीय गणना पद्धति को सीखा था।
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बुखारा के ही एक अन्य विद्वान इब्नसीना ने अपनी अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने भारतीय अंक व गणना पद्धति उन मिस्री उपदेशकों से सीखी थी जो धर्म प्रचार के लिए वहां आते थे।
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वह इस पद्धति से इतना प्रभावित हुआ कि जब वह “ सिल्वेस्टर द्वितीय ” के नाम से पोप बना तो उसने पूरे यूरोप में भारतीय अंकों व गणना पद्धति के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
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बुखारा के ही एक अन्य विद्वान इब्नसीना ने अपनी अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने भारतीय अंक व गणना पद्धति उन मिस्री उपदेशकों से सीखी थी जो धर्म प्रचार के लिए वहां आते थे।
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कई अरब विद्वानों ने स्वतंत्र रुप से भी भारतीस अंकों व गणना पद्धति पर भी पुस्तकें लिखी, जिनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई सन् 825 ई. में अल ख्वारिज्म की लिखी पुस्तक “किताब हिसाब अल अद्द् अल हिन्दी”
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कई अरब विद्वानों ने स्वतंत्र रुप से भी भारतीस अंकों व गणना पद्धति पर भी पुस्तकें लिखी, जिनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई सन् 825 ई. में अल ख्वारिज्म की लिखी पुस्तक “ किताब हिसाब अल अद्द् अल हिन्दी ”
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शायद इसका आधार दर्शन रहा होगा, चूंकि भारतीय गणना पद्धति के अनुसार शून्य का मान कुछ नहीं और अनंत दोनों होता है और भारतीय दार्शनिक मान्यता है कि अनंत हमेशा जहां कुछ न हो अर्थात् शून्य में ही प्रगट होता है।
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संभवत: भारत का सबसे प्राचीन काल गणना पद्धति जिसे '' सौर सिद्धान् त '' कहते हैं, की काल पद्धति उस समय अस्तित् व में रही हो इसे वैदिक पद्धति में सामान् य तौर पर मान् य किया जाता है ।
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हम अंकों और उस पर आधारित गणना पद्धति के इतिहास की बात करें तो विश्व के अधिकांश जगहों पर पर गणना पद्धति का प्रारम्भिक आधार दस ही रहा है और भारतीय गणना पद्धति को तो दशमिक गणना पद्धति भी कहा जाता है।
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हम अंकों और उस पर आधारित गणना पद्धति के इतिहास की बात करें तो विश्व के अधिकांश जगहों पर पर गणना पद्धति का प्रारम्भिक आधार दस ही रहा है और भारतीय गणना पद्धति को तो दशमिक गणना पद्धति भी कहा जाता है।