मैं गणित में कमजोर होने की वजह से सभी की दृष्टि में बुद्धु था ही. आजसमझ में आ रहा है, कि उस समय के गणित विद्या के पारंगत तथाकथित बुद्धिमानोंसे आज कम्प्यूटर यंत्र करोड़ों गुना अधिक बुद्धिमान है! पर कम्प्यूटर क्यारसा साहू की वेदना को समझ सकेगा? वृंदा विधवा के हृदय की हाहाकार को समझपायेगा? "कबूतर मेरा गुरु" कहानी लिख पायेगा? लिख पायेगा "अंधेरी रात कासूरज" जैसी कहानी? मेरे शिक्षक या अध्यापक कोई भी मेरे साहित्यिक जीवनके निर्माण में सहायक नहीं हुए.