इस वार्ड में कमलागंज जाटव मोहल्ले के लोगों का आक्रोश इस बात को लेकर था कि पूरे शहर में विधायक व नपा निधि से बोर कराए जा रहे हैं, पर गरीबों की बस्ती होने के बाद भी जाटव मोहल्ला में एक भी बोर नहीं कराया गया है और यहां लोग पानी के लिए मोहताज हो रहे हैं।
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जिस तरह इस्लाम के नाम पर गंदगी फैलाने वालों के लिये दुनिया को दारुल इस्लाम बनाने, सारे काफिरों यानी 'काफिरों' (गैर मुसलामानों) को 'मोमीन' बनाने हेतु क्रूरतम हिंसा समेत हर हथकंडे जायज हैं, उसी तरह 'वाम' हर कथित पूजीवादी समूहों का सफाया कर दुनिया को गरीबों की बस्ती बनाने के अपने युटोपिया को पूरा करने कुछ भी कर गुजरने से परहेज़ नहीं.
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जिस तरह इस्लाम के नाम पर गंदगी फैलाने वालों के लिये दुनिया को दारुल इस्लाम बनाने, सारे काफिरों यानी ‘ काफिरों ' (गैर मुसलामानों) को ‘ मोमीन ' बनाने हेतु क्रूरतम हिंसा समेत हर हथकंडे जायज हैं, उसी तरह ‘ वाम ' हर कथित पूजीवादी समूहों का सफाया कर दुनिया को गरीबों की बस्ती बनाने के अपने युटोपिया को पूरा करने कुछ भी कर गुजरने से परहेज़ नहीं.
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सोने चांदी की चमक दमक और सता के सुख ने भुला दिया है गरीब भाई बहीन को, नाते रिश्ते दारों को! आज मीडिया वाले गरीबों की बस्ती में जाकर, नगे भूखे बच्चों की कृष काया, कंकाल बने जीते जागते उनके मां बाप की तस्वीरें टी वी की खबरों के साथ जनता को दिखा रहे हैं लेकिन कल के ये आम आदमी आज के नेता देश के कर्ण धार इस सत्य को सिरे से नकार रहे हैं!
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मुझे चिंता लगी थी, तनहाई है कि मिलने का नाम ही नहीं ले रही थी, जबकि Bachchan साहब Clearly Indication दे चुके थे, कि वो और तनहाई अक्सर बातें करते हैं … मुझे लगा कि तनहाई शायद गरीबों की बस्ती में मिले, मैं वहां पहुंचा तो लंबी लंबी राशन की, पानी की Line तो मिल गई लेकिन तनहाई नहीं मिली … मैंने एक से पूछा तो बोला, भाईसाब इस बस्ती में तो मंहगाई मिलती है, तनहाई कभी नहीं मिली …
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खिड़की के शीशे पर पड़तीं रिमझिम बूँदों की टप-टप में से दावानल में जलते गिरते दरख़्तों की कड़-कड़ में से मलय पर्वत से आतीं सुहानी हवाओं की सुगंधियों में मिलना या हिमालय पर्वत की नदियों के किनारे मिलना धरती की कोख में पड़े किसी बीज में मिलना या किसी बच्चे के गले में लटकते ताबीज़ में मिलना लहलहाती फ़सलों की मस्ती में या गरीबों की बस्ती में मिलना पतझड़ के मौसम में किसी चरवाहे की नज़र में उठते उबाल में मिलना या धरती पर गिरे सूखे पत्तों के उछाल में मिलना मैं तुझे पहचान लूँगी…
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मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है गरीबों की बस्ती में उखाड़ है, पछाड़ है धतू तेरी, धतू तेरी, कुच्छो नहीं! कुच्छो नहीं ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है ताड़ के पत्ते हैं, पत्तों के पंखे हैं पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है कुच्छो नहीं, कुच्छो नहीं ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!