एक तरह से वहीदा रहमान की स्थिति को प्रदर्शित करते हैं कि वह नाचने वाली है लेकिन एक अदृश्य “पिंजरे” में कैद है और भोलाभाला ग्रामीण गाड़ीवाला (जिसे “चलत मुसाफ़िर” की संज्ञा दी गई है) उसे पा नहीं सकेगा… इस गीत के बोल भी उत्तरप्रदेश-बिहार के ग्रामीण बोलचाल से प्रेरित हैं, जिसे हम अवधी, भोजपुरी कुछ भी नाम दे सकते हैं…
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एक तरह से वहीदा रहमान की स्थिति को प्रदर्शित करते हैं कि वह नाचने वाली है लेकिन एक अदृश्य “पिंजरे” में कैद है और भोलाभाला ग्रामीण गाड़ीवाला (जिसे “चलत मुसाफ़िर” की संज्ञा दी गई है) उसे पा नहीं सकेगा… इस गीत के बोल भी उत्तरप्रदेश-बिहार के ग्रामीण बोलचाल से प्रेरित हैं, जिसे हम अवधी, भोजपुरी कुछ भी नाम दे सकते हैं…
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मन की बात को मर्माहत होकर लिखा है आपने, अपनी अनुभूतियों को शब्दों में बाँधने में बहुत पीड़ा हुई होगी.आपने दृश्यों को जीवित कर दिया.छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया के मशहूर गीत गाड़ीवाला के एक अंतरे में प्रेम को कुछ इस तरह से परिभाषित किया गया है “मया नहीं चीन्हे रे देसी-बिदेसी,मया के मोल न तोल,जात-बिजात न जाने रे मया,मया मयारुक बोल”.विदेश में पंछी प्रेम की कथा के सन्दर्भ में ये पंक्तियाँ कितनी प्रासंगिक हैं.
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मन की बात को मर्माहत होकर लिखा है आपने, अपनी अनुभूतियों को शब्दों में बाँधने में बहुत पीड़ा हुई होगी.आपने दृश्यों को जीवित कर दिया.छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया के मशहूर गीत गाड़ीवाला के एक अंतरे में प्रेम को कुछ इस तरह से परिभाषित किया गया है “मया नहीं चीन्हे रे देसी-बिदेसी,मया के मोल न तोल,जात-बिजात न जाने रे मया,मया मयारुक बोल”.विदेश में पंछी प्रेम की कथा के सन्दर्भ में ये पंक्तियाँ कितनी प्रासंगिक हैं.