वो इस अजीब से समय में गुत्थम गुत्था सवालों के जाल में खोया रहता था....गोया, ये दीवार क्यों नहीं चलती और चलती होती तो कहां तक पहुंच चुकी होती?
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जाता हूँ अभी और उनको देता हूँ खेलने के लिए सामान कुछ गुत्थम गुत्था करके खेलूँगा मैं भी उनके संग और पहुँच जाऊंगा अपने बचपन में पलक झपकते ही...
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लेकिन मेरा सुझाव है की इस लेख की मूळ भावना को समझना चाहिए न की इसे सरकारी तंत्र से बेवजह गुत्थम गुत्था करने के लिए प्रेरित करने वाला आलेख.
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वो इस अजीब से समय में गुत्थम गुत्था सवालों के जाल में खोया रहता था....गोया, ये दीवार क्यों नहीं चलती और चलती होती तो कहां तक पहुंच चुकी होती?
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ये दोनों कवितायें एक में एक गुत्थम गुत्था हो गयी हैं, यदि अशोक भाई, आप उन्हें अलगा देते, तो अच्छा होता.... बधाई अच्युतानंद जी को...
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जाता हूँ अभी और उनको देता हूँ खेलने के लिए सामान कुछ गुत्थम गुत्था करके खेलूँगा मैं भी उनके संग और पहुँच जाऊंगा अपने बचपन में पलक झपकते ही...
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गाने में नायिका का पदार्पण भी होता है उसके साथ वो ऐसे गुत्थम गुत्था होता है जैसे वाशिंग मशीन में धुलाई के वक़्त कपडे एक दूसरे से गुत्थम गुत्था हो जाते हैं।
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गाने में नायिका का पदार्पण भी होता है उसके साथ वो ऐसे गुत्थम गुत्था होता है जैसे वाशिंग मशीन में धुलाई के वक़्त कपडे एक दूसरे से गुत्थम गुत्था हो जाते हैं।
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अपराजित का यह भाव काल से गुत्थम गुत्था होने या एक कठिन संघर्ष में शामिल होने से ही पैदा होता है और यह भाव इन तीनों कवियों में समान रूप से मौजूद है।
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भूलना इसलिये अच्छा है कि नॉर्मल जिंदगी जीने को मिलता है, और न भूलना खराब है कि फिर जीवन उसी में उमड़ा घुमड़ा रहेगा, लोग इसी सब में गुत्थम गुत्था होते रहेंगे।