किसके जिम्मे है यह देश और किसे इसकी रक्षा करनी चाहिये थी? जब इन सवालों से हरिया की बुध्दि में समाधान की अपेक्षा तनाव की स्थिति अधिक बनने लगी तो वह हड़बड़ा कर उठा और रसोई घर की और देखने लगा ताकि गृह स्वामिनी कुछ खाने को दे तो बुध्दि और पेट का आपस में तारतम्य बैठे।
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देवता “ के मूल मन्त्रों की स्थापना इसी समय होने लगी थी | ऋग्वेद १० / १५/१०४२०/२ में ऋषिका शची पोलोमी का कथन है...” अहं केतुरहं मूर्धामुग्रा विवाचानी | ममेदनु क्रत पति: सेहनाया उपाचरेत | |.......अर्थात मैं ध्वज स्वरुप (परिवार की गृह स्वामिनी) तीब्र बुद्धिवाली व प्रत्येक विवेचना में समर्थ हूँ | मेरे पतिदेव सदैव मेरे कार्यों का अनुमोदन करते हैं
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आज किसी बच्चे को प्रातः जगाने के लिए आवाज नही लगानी पडी, घर में खुशनुमा माहौल है, लग रहा है कि घर के प्रत्येक कोने में साफ और सुन्दर दिखने की होड लगी है और किचन से आती पकवानों व मिठाइयों की खुशबू से तो ऐसा लग रहा है मानो किचन तो अपनी गृह स्वामिनी के साथ मिलकर शाम होने से पहले ही अपने आप को विजेता घोषित करवा लेना चाहती है ।