1 इससे प्राइवेट स्कूलों को अपना बोरिया बिस्तर गोल करना पड़ सकता है जहां विद्यार्थी दाखिला ही इसी उम्मीद के साथ लेते हैं कि परीक्षा के दिनों में उन्हें परीक्षा हाल में मुंहमांगी पाॅकेटबुक्स व पर्चियां सप्लाई होगीं।
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रामलीला का मौसम शुरू होते ही हम लोग स्कूल गोल करना शुरू कर देते थे…. ऐसा नही था कि हम पढने मे होशियार नही थे… लेकिन मन तो मनचला होता है, इधर उधर ना भटके ऐसा कैसे हो सकता है.
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किसी वस्तु को गोल करना और उसको एक विशेष व्यास का बनाना, चूड़ी काटना, किसी वस्तु पर ढलाव बनाना, छोटे छेदों को बड़ा करना, भीतर के व्यास को बढ़ाना तथा इसी प्रकार के अन्य दूसरे काम किए जाते हैं।
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किसी वस्तु को गोल करना और उसको एक विशेष व्यास का बनाना, चूड़ी काटना, किसी वस्तु पर ढलाव बनाना, छोटे छेदों को बड़ा करना, भीतर के व्यास को बढ़ाना तथा इसी प्रकार के अन्य दूसरे काम किए जाते हैं।
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रामलीला का मौसम शुरू होते ही हम लोग स्कूल गोल करना शुरू कर देते थे…. ऐसा नही था कि हम पढने मे होशियार नही थे… लेकिन मन तो मनचला होता है, इधर उधर ना भटके ऐसा कैसे हो सकता है.
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मसलन ऐसे कई प्राइवेट स्कूलों को अपना बोरिया-बिस्तर गोल करना पड़ सकता है, जिनमें विद्यार्थी दाखिला ही इस आश्वासन के बाद लेते हैं कि उन्हें 'शर्तिया पास' करवाया जाएगा और इस गारंटी को पूरा करने के लिए 'परीक्षा केंद्र अधीक्षक' नामक प्राणी की 'पेड' सेवाएँ ली जाती हैं।
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हालांकि, क्राईसलर के अधिकारी गांदिनी के काम से खुश नहीं थे तथा उन्होनें अमेरिकी कार निर्माता की अपनी डिजाईन टीम को कार की बनावट में बड़ा बदलाव करने के लिए नियुक्त किया, जिनमें गांदिनी के मूल डिजाईन में बनाये गए ट्रेडमार्क तेज़ किनारों तथा कोनों को गोल करना शामिल था.
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हालांकि, क्राईसलर के अधिकारी गांदिनी के काम से खुश नहीं थे तथा उन्होनें अमेरिकी कार निर्माता की अपनी डिजाईन टीम को कार की बनावट में बड़ा बदलाव करने के लिए नियुक्त किया, जिनमें गांदिनी के मूल डिजाईन में बनाये गए ट्रेडमार्क तेज़ किनारों तथा कोनों को गोल करना शामिल था.
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ताऊ बिलकुल सही कह रहे हैं रामप्यारी कुछ न कुछ नुक्स तो निकाल ही देती तुम्हारी टांग में, नहीं तो उसी से कटवा देते और क्या था:) और अनूप जी आप क्यों मेरी पार्टी गोल करना चाहते हैं, कहाँ तो हम mana रहे हैं की प्रशांत पार्टी दे और आप उसे ही हमसे पार्टी लेने के लिए उकसा रहे हैं.
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पाँव रखती हैं आता गूंथना सीखती हैं चपातियों को गोल करना सीखती हैं सब्जियों-मसालों में सम्बंध बनाना सीखती हैं | पिता की आय का हिसाब रखने लगती हैं माँ की थकान का हिसाब रखने लगती हैं घर के उत्तरदायित्व बांटने लगती हैं | इतना सब जब सीख जाती हैं सहसा चिड़िया-सी उड़ जाती हैं अपना संसार बसाती हैं | कहाँ जनमती हैं, कहाँ पलती हैं, कहाँ घर बसाती हैं! ऐसी होती हैं बेटियाँ! अशोक लव-